5 lines on raja vikramaditya
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चक्रवर्ती विक्रमादित्य सैन परमार :- उज्जैन के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। "विक्रमादित्य" की उपाधि भारतीय इतिहास में बाद के कई अन्य राजाओं ने प्राप्त की थी, जिनमें गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय और सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (जो हेमु के नाम से प्रसिद्ध थे) उल्लेखनीय हैं। राजा विक्रमादित्य नाम, 'विक्रम' और 'आदित्य' के समास से बना है जिसका अर्थ 'पराक्रम का सूर्य' या 'सूर्य के समान पराक्रमी' है
विक्रमादित्य जाती के पँवार थे। उनका स्वभाव बहुत अच्छा था। उनके विषय में जो कहानियां हिंदूओ में प्रचलित है, उससे स्पष्ट होता है कि उनका वास्तविक स्वरूप कितना महान था। युवा अवस्था में यह राजा बहुत समय तक साधुओं के वेशभूषा में (मालवगण में) भ्रमण करता रहा। उसने बड़ा तपस्वी जीवन व्यतीत किया। थोडे़ ही दिनों में नहरवाला और मालवा दोनों देश उसके अधिपत्य में हो गये। यह निश्चित था कि वह एक महापराक्रमी चक्रवर्ती राजा होगा। राजकाज हाथ में लेते ही उसने न्याय को संसार में ऐसा फैलाया कि अन्याय का चिन्ह बाकी न रहा और साथ ही साथ उदारता भी अनेकों कार्यों में दिखलाईं।" [2] द ओरिजिन आॅफ मॅथेमेटिक्स में भी वर्णन मिलता है कि विक्रमादित्य आज से करिब ईसा पूर्व पहली शताब्दी में पँवार (प्रमर) राजवंश के सम्राट के रूप में विख्यात हुए। उन्होंने समस्त भारत तथा भारत के लोगों के दिलों को जीता।[3] राजा भोज या परमार भोज और विक्रमादित्य एक ही राजवंश के है। दोनों का शासन भी उज्जयिनी में था। [4] महेशचंद्र जैन सील ने स्पष्ट लिखा है कि राजा विक्रमादित्य लोधी थे विक्रमादित्य भारतीय इतिहास का अनूठा 84 कलाओं से पूर्ण कवि दंतिया आज भी जिंदा है वह लोधी ही थे.इसमें कोई संदेह नहीं है कि विक्रमादित्य अग्निवंशीय प्रमार क्षत्रिय ही थे। [5] हिन्दू शिशुओं में 'विक्रम' नामकरण के बढ़ते प्रचलन का श्रेय आंशिक रूप से विक्रमादित्य की लोकप्रियता और उनके जीवन के बारे में लोकप्रिय लोक कथाओं की दो श्रृंखलाओं को दिया जा सकता है।
चक्रवर्ती विक्रमादित्य सैन परमार :- उज्जैन के राजा थे, जो अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। "विक्रमादित्य" की उपाधि भारतीय इतिहास में बाद के कई अन्य राजाओं ने प्राप्त की थी, जिनमें गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय और सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (जो हेमु के नाम से प्रसिद्ध थे) उल्लेखनीय हैं। राजा विक्रमादित्य नाम, 'विक्रम' और 'आदित्य' के समास से बना है जिसका अर्थ 'पराक्रम का सूर्य' या 'सूर्य के समान पराक्रमी' है।उन्हें विक्रम या विक्रमार्क (विक्रम + अर्क) भी कहा जाता है (संस्कृत में अर्क का अर्थ सूर्य है)। भविष्य पुराण व आईने अकबरी के अनुसार विक्रमादित्य सैन परमार वंश के सम्राट थे जिनकी राजधानी उज्जयनी थी । राजा विक्रमादित्य के इतिहास पर कई मतभेद है कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह लोधी राजपूत हैं। लेकिन नवसाहसांकचरित, आएन-ए-अकबरी, विक्रमांकदेव चरित्र, प्राचीन जैन अनुश्रुतियां, भविष्य महापूराण, कल्हण कृत राजतरंगिणी,नेपाल राजवंशावली और तारिके - ए-फरिश्त जैसे प्रसिद्ध ग्रंथों, अभिलेखों और साहित्यिक स्त्रोतों में विक्रमादित्य को प्रमार या परमार अथवा अग्निवंशीय कहाँ गया है। हिस्ट्री आॅफ राइज आॅफ मोहम्मद पावर इन इण्डिया में लिखा है कि "पोवार राजा विक्रमजीत (विक्रमादित्य) ने धारानगरी (धार) का प्रसिध्द किल्ला बनवाया था।
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