5.रस। (5) ) संचारी भाव क्या है? (क) पात्रों या वस्तुओं के कारण उत्पन्न भाव (ख) स्थाई भाव जागृत करने वाला भाव (ग) मन में निरंतर संचालित होने वाले भाव (घ) आलंबन द्वारा जाग्रत भाव
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व्याकरण रस
रस – साहित्य का नाम आते ही रस का नाम स्वतः आ जाता है। इसके बिना साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। भारतीय साहित्य शास्त्रियों ने साहित्य के लिए रस की अनिवार्यता समझा और इसे साहित्य के लिए आवश्यक बताया। वास्तव में रस Ras काव्य की आत्मा है।
किसी साहित्य को पढ़कर जब व्यक्ति कविता के भावों से तादात्म्य स्थापित कर लेता है तब इस प्रक्रिया में उसके मन के स्थायी भाव रस में परिणित हो जाते हैं। इस तरह काव्य से जो आनंद प्राप्त होता है वह जीवन के अनुभवों से प्राप्त अनुभवों जैसा होकर भी उससे ऊँचे स्तर को प्राप्त कर लेता है। यह आनंद व्यक्तिगत संकीर्णता से अलग होता है।
परिभाषा-कविता-कहानी को पढने, सुनने और नाटक को देखने से पाठक, श्रोता और दर्शक को जो आनंद प्राप्त होता है, उसे रस कहते हैं।
रस के अंग-रस के चार अंग माने गए हैं –
स्थायीभाव
विभाव
अनुभाव
संचारीभाव
1. स्थायीभाव – कविता या नाटक का आनंद लेने से सहृदय के हृदय में भावों का संचार होता है। ये भाव मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं। सुषुप्तावस्था में रहने वाले ये भाव साहित्य के आनंद के द्वारा जग जाते हैं और रस में बदल जाते हैं
मानव मन में अनेक तरह के भाव उठते हैं पर साहित्याचार्यों ने इन भावों को मुख्यतया नौ स्थायी भावों में बाँटा है पर वत्सल भाव को शामिल करने पर इनकी संख्या दस मानी जाती है। ये स्थायीभाव और उनसे संबंधित रस इस प्रकार हैं –
2. विभाव – विभाव का शाब्दिक अर्थ है-भावों को विशेष रूप से जगाने वाला अर्थात् वे कारण, विषय और वस्तुएँ, जो सहृदय के हृदय में सुप्त पड़े भावों को जगा देती हैं और उद्दीप्त करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
विभाव के भेद होते हैं –
1. आलंबन विभाव-वे वस्तुएँ और विषय, जिनके सहारे भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं।
आलंबन विभाव के दो भेद होते हैं
(क) आश्रय – जिस व्यक्ति या पात्र के हृदय में भावों की उत्पत्ति होती है, उसे आश्रय कहते हैं।
(ख) विषय – जिस विषय-वस्तु के प्रति मन में भावों की उत्पत्ति होती है, उसे विषय कहते हैं। एक उदाहरण देखिए –
अपने भाइयों और साथी राजाओं के एक-एक कर मारे जाने से दुर्योधन विलाप करने लगा। यहाँ ‘दुर्योधन’ आश्रय तथा ‘भाइयों और राजाओं का एक-एक कर मारा जाना’ विषय है। दोनों के मेल से आलंबन विभाव बन रहा है।
2. उद्दीपन विभाव-वे वाह्य वातावरण, चेष्टाएँ और अन्य वस्तुएँ जो मन के भावों को उद्दीप्त अर्थात तेज़ करते हैं, उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं।
इसे उपर्युक्त उदाहरण के माध्यम से समझते हैं –
भाइयों एवं साथी राजाओं की मृत्यु से दुखी एवं विलाप करने वाला दुर्योधन ‘आश्रय’ है। यहाँ युद्ध के भयानक दृश्य, भाइयों के कटे सिर, घायल साथी राजाओं की चीख-पुकार, हाथ-पैर पटकना आदि क्रियाएँ दुख के भाव को उद्दीप्त कर रही हैं। अतः ये सभी उद्दीपन विभाव हैं।
3. अनुभाव – अनुभाव दो शब्दों ‘अनु’ और भाव के मेल से बना है। ‘अनु’ अर्थात् पीछे या बाद में अर्थात् आश्रय के मन में पनपे भाव और उसकी वाह्य चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं।
जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं।
4. संचारी भाव-आश्रय के चित्त में स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले जो अन्य भाव आते रहते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनका दूसरा नाम अस्थिर मनोविकार भी है।
चुटकुला सुनने से मन में उत्पन्न खुशी तथा दुर्योधन के मन में उठने वाली दुश्चिंता, शोक, मोह आदि संचारी भाव हैं।
संचारी भावों की संख्या 33 मानी जाती है।
संचारी और स्थायी भावों में अंतर –
1. संचारी भाव बनते-बिगड़ते रहते हैं, जबकि स्थायीभाव अंत तक बने रहते हैं।
2. संचारी भाव अनेक रसों के साथ रह सकता है। इसे व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है, जबकि प्रत्येक रस का स्थाई भाव एक ही होता है।
रस-निष्पत्ति –
हृदय के स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है अर्थात् वे एक दूसरे से मिल-जुल जाते हैं, तब रस की निष्पत्ति होती है। अर्थात्
स्थायीभाव + विभाव + अनुभाव + संचारीभाव = रस की व्युत्पत्ति।