5. सार्वजानिक उधोग में संगठन के क्या रूप है। हर एक की विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए
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निजी कम्पनियां ऐसे क्षेत्रों में उद्योग लगाने हेतु रूचि नहीं लेते थे जिसमें, भारी पूंजी निवेश हो लाभ कम हो, सगर्भता की अवधि (जेस्टेशन पीरियड) लम्बी हो जैसे-मशीन निर्माण, आधारभूत ढ़ांचा, तेल अन्वेषण आदि इसी तरह निजी उद्यमी उन क्षेत्रों को ही प्राथमिकता देते हैं जहां संसाधन सुलभता से उपलब्ध हों जैस-कच्चे माल, श्रमिक, विद्युत, बाजार आदि। इसके परिणाम स्वरूप क्षे़त्रीय असंतुलन बढ़ने लगा था। इसलिए सरकार ने निजी डपक्रमों के व्यावसायिक कार्यकलापों को नियंत्रित करते हुए व्यवसाय में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना प्रारंभ किया, और सार्वजनिक उद्रयो उदयमों जैसे, कोयला उद्योग तेल उद्योग मशीन-निमार्ण, इस्पात उत्पादन, वित्त आरै बैंकिंग, बीमा, रेलवे इत्यादि उद्योगो की स्थापना सरकार द्वारा की गई है।
इन इकाइयों पर न केवल केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय सरकारों का स्वामित्व रहता है, वरन् इनका प्रबंधन और नियंत्रण भी इनके द्वारा ही किया जाता है। ये इकाइयां सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के नाम से जानी जाती हैं। इसमें आप सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रकृति और उनकी विशेषताओं तथा उनके संगठन के स्वरूपों के बारे में अध्ययन करेंगे।
सार्वजनिक उपक्रम का अर्थ
ऐसे व्यावसायिक इकाइयाँ जिनका स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण, केन्द्र सरकार, राज्य या स्थानीय सरकार के द्वारा किया जाता है उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों अथवा सार्वजनिक उपक्रमों के नाम से जाना जाता है।
सार्वजनिक उपक्रमों के अन्तर्गत राष्ट्रीयकृत निजी क्षेत्र के उद्यमों जैसे, बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम और सरकार द्वारा स्थापित नये उद्यमों जैसे हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (एच एम टी), भारतीय गैस प्राधिकरण (गेल), राज्य व्यापार निगम (एस टी सी), इत्यादि आते हैं।
सार्वजनिक उपक्रमों की विशेषताएँ
सरकारी स्वामित्व एवं प्रबन्ध-सार्वजनिक उपक्रमों का स्वामित्व और प्रबन्ध केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय सरकार के पास होता है तथा उन्हीं के द्वारा इनका प्रबन्ध किया जाता है। सार्वजनिक उपक्रमों पर या तो सरकार का पूर्ण स्वामित्व रहता है या उन पर सरकारी और निजी उद्योगपतियों तथा जनता का स्वामित्व संयुक्त रूप से होता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय थर्मल पॉवर कार्पोरेशन एक औद्योगिक संगठन है, जिसकी स्थापना केन्द्रीय सरकार द्वारा की गई और इसकी अंश पूँजी का भाग जनता द्वारा उपलब्ध कराया गया है। ऐसी ही स्थिति तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओ एन जी सी) की है।
सरकारी कोष से वित्तीय सहायता- सार्वजनिक उपक्रमों को उनकी पूॅंजी सरकारी कोष से मिलती है, और सरकार को उनकी पूॅंजी के लिए प्रावधान अपने बजट में करना पड़ता है।
लोक कल्याण- सार्वजनिक उपक्रमों का लक्ष्य लाभ कमाना नहीं अपितु सेवाओं और वस्तुओं को उचित दामों पर उपलब्ध कराना होता हैं। इस संदर्भ में भारतीय तेल निगम या भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) का उदाहरण ले सकते हैं। ये इकाइयॉं जनता को पैट्रोलियम और गैस उत्पादों को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराते हैं।
सार्वजनिक उपयोगी सेवाए- सार्वजनिक उपक्रम लोक उपयोगी सेवाओं जैसे परिवहन, बिजली, दूरसंचार आदि को उपलब्ध कराते हैं।
सार्वजनिक जवाबदेही- सार्वजनिक उपक्रम लोक नीतियों से शासित होते हैं जिन्हें सरकार बनाती है तथा यह विधायिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
अत्यधिक औपचारिकताएँ- सरकारी नियम एवं विनियम सार्वजनिक उद्यमों को उनके कार्यों में अनेकों औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए बाध्य करते हैं। इसी के फलस्वरूप प्रबन्धन का कार्य बहुत संवेदनशील और बोझिल बन जाता है।
निजी क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच अन्तर
निजी क्षेत्र से हमारा अभिप्राय आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का निजी तौर पर किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा संचालन से है। ये व्यक्ति लाभ कमाने के लिए निजी क्षेत्र में व्यवसाय करने को प्राथमिकता देते हैं। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र का अर्थ, सार्वजनिक प्रभुत्व के द्वारा आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का संचालन करना है। सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित उद्यमों का मुख्य उद्देश्य लोक हित को सुरक्षा प्रदान करना होता है।
Answer:
sarvjanek setar ke example