Hindi, asked by Anonymous, 2 months ago

5. शाम एक किसान कविता की घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए l
please ne spamming


sumul: Maine thank inbox ke liye nhi kiya tha
sumul: I have no power
sumul: ok
seebtain: hi
seebtain: hlo
sumul: hi

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Answered by Anonymous
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शाम एक किसान कविता का सारांश (summary of shaam ek kisan): सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने अपनी कविता ‘शाम-एक किसान’ में शाम के समय का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। शाम का प्राकृतिक दृश्य बहुत ही सुंदर है। इस दौरान पहाड़ – बैठे हुए किसी किसान जैसा दिख रहा है। आकाश उसके माथे पर बंधे एक साफे (पगड़ी) की तरह दिख रहा है। पहाड़ के नीचे बह रही नदी, किसान के पैरों पर पड़ी चादर जैसी लग रही है। पलाश के पेड़ों पर खिले लाल फूल किसी अंगीठी में रखे अंगारों की तरह दिख रहे हैं। फिर पूर्व दिशा में गहराता अंधेरा भेड़ों के झुंड जैसा लगता है। अचानक मोर के बोलने से सब बदल जाता है और शाम ढल जाती hai उनके अनुसार, शाम के समय पहाड़ किसी बैठे हुए किसान की तरह दिख रहा है और आसमान उसके सिर पर रखी किसी पगड़ी की तरह दिख रहा है। पहाड़ के नीचे बह रही नदी, किसान के घुटनों पर रखी किसी चादर जैसी लग रही है। पलाश के पेड़ों पर खिले लाल पुष्प कवि को अंगीठी में जलते अंगारों की तरह दिख रहे हैं। पूर्व में फैलता अंधेरा सिमटकर बैठी भेड़ों की तरह प्रतीत हो रहा है।

पश्चिम दिशा में मौजूद सूरज चिलम पर रखी आग की तरह लग रहा है। चारों तरफ एक मनभावन शांति छाई है।

अचानक- बोला मोर।शाम एक किसान कविता का भावार्थ : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने अपनी कविता शाम एक किसान के इस पद्यांश में शाम के मनोहर सन्नाटे के भंग होने का वर्णन किया है। चारों तरफ छाई शांति के बीच अचानक एक मोर बोल पड़ता है, मानो कोई पुकार रहा हो, ‘सुनते हो!’ फिर सारा दृश्य किसी घटना में बदल जाता है, जैसे सूरज की चिलम किसी ने उलट दी हो, जलती आग बुझने लगी हो और धुंआ उठने लगा हो। असल में, अब सूरज डूब रहा है और चारों तरफ अंधेरा छाने लगा है।

Answered by sumul
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Answer:

कविता के कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी का जन्म 15 सितम्बर सन् 1927 में उत्तरप्रदेश के बस्ती जिले में हुआ। ये अपने समय के बहुत ही प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि थे। कविताओं के अलावा इन्होंने बाल साहित्य, नाटक और कहानियां भी लिखीं। उनकी कृतियों को कई अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इनकी प्रमुख रचनाएं ‘खूंटियों पर टँगे लोग’, ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘बकरी’, ‘बतूता का जूता’ हैं। खूंटियों पर टँगे लोग काव्य संग्रह के लिए इन्हें सन् 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने अपनी कविता ‘शाम-एक किसान’ (shaam ek kisan) में शाम के समय का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। शाम का प्राकृतिक दृश्य बहुत ही सुंदर है। इस दौरान पहाड़ – बैठे हुए किसी किसान जैसा दिख रहा है। आकाश उसके माथे पर बंधे एक साफे (पगड़ी) की तरह दिख रहा है। पहाड़ के नीचे बह रही नदी, किसान के पैरों पर पड़ी चादर जैसी लग रही है। पलाश के पेड़ों पर खिले लाल फूल किसी अंगीठी में रखे अंगारों की तरह दिख रहे हैं। फिर पूर्व दिशा में गहराता अंधेरा भेड़ों के झुंड जैसा लगता है। अचानक मोर के बोलने से सब बदल जाता है और शाम ढल जाती है।

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