Hindi, asked by Zainab3052005, 1 year ago

5 shlok on guru in sanskrit

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Answered by amarajothis
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गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

 भावार्थ :

गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः । तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥

 भावार्थ :

धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं ।

निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते । गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥

 भावार्थ :

जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं ।

नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ । गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत् ॥

 भावार्थ :

गुरु के पास हमेशा उनसे छोटे आसन पे बैठना चाहिए । गुरु आते हुए दिखे, तब अपनी मनमानी से नहीं बैठना चाहिए ।

किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥

 भावार्थ :

बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।

प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा । शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥

 भावार्थ :

प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।

गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते । अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥

 भावार्थ :

'गु'कार याने अंधकार, और 'रु'कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।

शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च । नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ॥

 भावार्थ :

शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख देखना चाहिए


Zainab3052005: no
amarajothis: y..
amarajothis: shlok on guru ?? what do u mean ??
Zainab3052005: first u have to give correct answer
amarajothis: ok...
Zainab3052005: guru teacher
Zainab3052005: on teacher
amarajothis: tgen y did u thank
Zainab3052005: because u do response
amarajothis: ok..what about now...my answer ??
Answered by AbsorbingMan
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1. प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।

शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥

Meaning :- प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।

2. सर्वाभिलाषिणः सर्वभोजिनः सपरिग्रहाः ।

अब्रह्मचारिणो मिथ्योपदेशा गुरवो न तु ॥

Meaning :- अभिलाषा रखनेवाले, सब भोग करनेवाले, संग्रह करनेवाले, ब्रह्मचर्य का पालन न करनेवाले, और मिथ्या उपदेश करनेवाले, गुरु नहि है ।

3. गुरुरात्मवतां शास्ता शास्ता राजा दुरात्मनाम् ।

अथा प्रच्छन्नपापानां शास्ता वैवस्वतो यमः ॥

Meaning :- आत्मवान् लोगों का शासन गुरु करते हैं; दृष्टों का शासन राजा करता है; और गुप्तरुप से पापाचरण करनेवालों का शासन यम करता है (अर्थात् अनुशासन तो अनिवार्य हि है) ।

4. दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।

मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः ॥

Meaning :- मनुष्यत्व, मुमुक्षत्व, और सत्पुरुषों का सहवास – ईश्वरानुग्रह करानेवाले ये तीन मिलना, अति दुर्लभ है ।

5. किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।

दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥

Meaning :- बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।


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