5) दान का महत्त्व उसके साथ जुडी
से है।
Answers
दान का महत्व
दान देने वाले की सभी प्रशंसा करते हैं। राजा शिवि, मुनि दधीच, कर्ण आज भी दान के कारण अमर हैं। आपके पास जो भी है यथा-धन, वस्तु, अन्न, बल, बुद्धि, विद्या उसे किसी अन्य जीव को उसकी आवश्यकता पर, चाहे वह मांगे या न मांगे, उसे देना परम धर्म, मानवता या कर्तव्य है। प्रकृति अपना सब कुछ जीवों को बिना मांगे ही दे रही है।
ईश्वर भी, भले हम मांगें या न मांगें हमारी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार हमें देता है। अत: वह हमसे भी अपेक्षा करता है कि हम भी, हमारे पास जो है उसे दूसरों को दें।
शास्त्रों में कई ऐसे प्रसंग हैं कि जो दीनों की सहायता नहीं करता वह कितना भी यज्ञ, जप, तप, योग आदि करे उसे स्वर्ग या सुख नहीं प्राप्त होता। जिस व्यक्ति में या समाज में दान की भावना नहीं होती उसे सभ्य नहीं कहा जाता। उसकी निंदा होती है और उसका पतन होता है, क्योंकि समाज में सुखी-दुखी, और संपन्न-विपन्न होंगे ही और सहयोग की आवश्यकता होगी। अत: समाज के अस्तित्व और प्रगति के लिए सहयोग आवश्यक है।
दान देने के समय आपके मन में, अहं का, पुण्य कमाने का या अहसान करने का नहीं होना चाहिए, उस पात्र का आपको कृतज्ञ होना चाहिए कि उसने आपके अंदर सद्भाव जगाकर आपको कृतार्थ किया। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता होनी चाहिए कि उसने आपको कुछ देने के योग्य बनाया।
गीता के अनुसार दान तीन प्रकार का होता है। जो दान कुपात्र व्यसनी को या अनादरपूर्वक या दिखावे के लिए दिया जाए वह अधम, जो बदले में कोई लाभ लेने या यश की आशा से कष्ट से भी दिया जाए वह दान मध्यम है। परंतु जो दान कर्तव्य समझकर, बिना किसी अहं भाव के, नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है वही उत्तम श्रेणी में आता है।
MARK AS BRAINLIST