Hindi, asked by nandasujeetkumar14, 1 month ago

5. उद्यौ मन अभिमान बढ़ायौ जदुपाती जोग जानि जिय साँचौ, नैन अकास चढायौ। नारिनि पै मोकौं पठवत हैं कहत सिखावन जोग मन ही मन आप करत प्रशंसा, यह मिथ्या सुख-भोग ​

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Answered by ajeetsingh748904
9

Answer:

nhi mil raha

Explanation:

nhi milraha

Answered by dgmellekettil
0

Answer:

प्रस्तुत पंक्तियां सूरदास द्वारा लिखित सूरसागर रचना के दशम स्कंध से ली गई है।

यह प्रसंग उस समय की है जब भगवान कृष्ण गोपियों को छोड़कर मथुरा प्रस्थान कर गए थे और गोपियां विरह में जल रही थी।

Explanation:

  • भगवान कृष्ण को अपने मित्र उद्धव के अभिमान का आभास हो जाता है, इसलिए उद्धव को प्रेम के वास्तविक ज्ञान को सिखाने के लिए श्री कृष्ण उन्हें ब्रज की ओर भेजते हैं।
  • वे उधर से गोपियों की विरह की चर्चा करते हुए कहते हैं, से मित्र! गोपियां मेरे विरह में व्याकुल हो गई है, तुम वहां जाकर उनको पूर्ण ब्रह्म का ज्ञान दो, जिससे वह मुझे भूल जाए क्योंकि जब तक वह मुझे भूलेंगी नहीं तब तक उनका दुख दूर नहीं होगा।
  • मित्र! तुमसे बढ़कर इतना बड़ा ज्ञानी, कोई महान अंतःकरण वाला दूसरा व्यक्ति मुझे नहीं मिलेगा, इसीलिए मैं तुम्हें वहां भेज रहा हूं।
  • ऐसी बातें सुनकर उद्धव जी को अपने ऊपर थोड़ा अभिमान आ जाता है।
  • प्रस्तुत पंक्तियां में इसी अभिमान की चर्चा की गई है।
  • भगवान कृष्ण का व्रज जाने का यह आदेश सुनकर उद्धव के मन में अभिमान की मात्रा बढ़ जाती है।
  • वे सोचने लगते हैं कि भगवान भी योग की सच्चाई को मान लिए हैं, और मुझे गोपियों के पास भेज रहे हैं।
  • कृष्ण स्वयं मुझे कह रहे हैं कि तुम जाकर उन विरह में जल रही गोपियों को योग की शिक्षा दो।
  • यह सोचकर उद्धव की आंखें आकाश में चढ़ गई, अर्थात् बहुत अभिमान हो गया और मन ही मन अपनी प्रशंसा करने लगे।

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