5. वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जात॥
कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज-समाज।
हौं आवत नाहीं हुतो, वाही पठयो ठेलि॥ की व्याखया बताओ
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इस पद में सुदामा के वापिस घर की तरफ लौटने का वर्णन है। वो सोचते हैं कि मैं मदद की उम्मीद लेकर श्रीकृष्ण के पास आया, लेकिन श्रीकृष्ण ने तो मेरी कोई मदद ही नहीं की। लौटते समय निराश और खिन्न सुदामा जी के मन में कई विचार घूम रहे थे, वो सोच रहे थे कि कृष्ण को समझना किसी के वश में नहीं है। एक तरफ तो उसने मुझे इतना आदर-सम्मान दिया, वहीं दूसरी तरफ मुझे बिना कुछ दिए लौटा दिया।
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