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त्योहारों का महत्त्व पर निबन्ध
1. भूमिका:
व्यक्ति अपनी प्रसन्नता अनेक प्रकार से प्रकट करता है किन्तु व्यक्ति जब वही प्रसन्नता कुछ नियमों में अपने आपको रखकर प्रकट करता है, तो वह धर्म से जुड़ जाता है और उसका उल्लास प्रकट करना त्यौहार का स्वरूप ले लेता है ।
संस्कृत के महाकवि-साहित्यकार कालिदास ने मनुष्य को उत्सवप्रिय कहा है क्योंकि मनुष्य किसी न किसी तरह उत्सव मनाकर अपने मन की कुंठा को दूर करके मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहता है । इसीलिए जीवन में त्यौहारों का बडा महत्त्व है ।
2. कारण:
भारत अनेक भौगोलिक भिन्नताओं (Geographical Diversities) का देश है । यहाँ अनेक प्रकार के धर्मों, जातियों और उपजातियों के लोग रहते हैं । हर जाति-धर्म के लोग अपने-अपने अलग-अलग विश्वासों (Beliefs) और भावनाओं (Sentiments) के अनुसार अलग-अलग प्रकार के त्यौहार मनाते हैंकिन्तु हर पर्व-त्यौहार किसी-न-किसी प्राकृतिक कारण (Natural Reason) से अवश्य जुड़ा रहता है ।
भारत का उत्तर हो या दी क्षण, पूरब हो या पश्चिम, फसल (Crop) को बोने और काटने के समय आने वाली समृद्धि (Prosperity) की आशा से सबका मन खुशी से झूम उठता है । लोगों के मन की यही खुशी बिहू लोहड़ी, बैसाखी मकर संक्रांति, ओणम, पोंगल, रामनवमी, रक्षाबंधन, दुर्गापूजा, होली दीपावली आदि त्यौहारों के रूप में प्रकट होती है ।
राजनैतिक कारणों से भी कई पर्व मनाये जाते हैं जैसे स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस, गाँधी जयंती, गणेश उत्सव इत्यादि । इसके अलावा हम जन्म दिन, शादी-ब्याह आदि अवसरों पर भी त्यौहारों की तरह ही उत्सव मनाते हैं ।
3. लाभ: - त्यौहारों से अनेक लाभ हैं । त्यौहारों के समय घर-परिवार, समाज के लोगों से मिलने-जुलने का अवसर तो मिलता ही है, इनके द्वारा आपसी मतभेद दूर करके एकता और भाईचारा कायम करने में भी आसानी रहती है ।
इससे राष्ट्रीय चेतना जगती है और देश मजबूत बनता है । इसके अलावा त्यौहारों से हमारा मन नये सोच-विचार तथा परिश्रम के लिए फिर से ताजा हो जाता है ।
4. उपसंहार:- अत: किसी भी देश या समाज के लिए त्यौहारों का बड़ा महत्त्व है । जिस देश के लोग त्यौहारों को बेकार क्रियाकलाप (Activity) न मानकर उनके महत्त्व को समझते हैं, वे ही इन त्योहारों से पूरा आनंद उठा पाते हैं ।
मानव जीवन अनेक विविधताओं से भरा हुआ है । अपने जीवनकाल में उसे अनेक प्रकार के कर्तव्यों व दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है । इनमें वह प्राय: इतना अधिक व्यस्त हो जाता है कि अपनी व्यस्त जिंदगी से स्वयं के मनोरंजन आदि के लिए समय निकालना भी कठिन हो जाता है ।
इन परिस्थितियों में त्योहार उसके जीवन में सुखद परिवर्तन लाते हैं तथा उसमें हर्षोंल्लास व नवीनता का संचार करते हैं । त्योहार अथवा पर्व सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं व पूर्व संस्कारों पर आधारित होते हैं । जिस प्रकार प्रत्येक समुदाय, जाति व धर्म की मान्यताएँ होती हैं उसी प्रकार इन त्योहारों को मनाने की विधियों में भिन्नता होती है ।
सभी त्योहारों की अपनी परंपरा होती है जिससे संबंधित जन-समुदाय इनमें एक साथ भाग लेता है । सभी जन त्योहार के आगमन से प्रसन्नचित्त होते हैं व विधि-विधान से, पूर्ण हर्षोल्लास के साथ इन त्योहारों में भाग लेते हैं ।
प्रत्येक त्योहार में अपनी विधि व परंपरा के साथ समाज, देश व राष्ट्र के लिए कोई न कोई विशेष संदेश निहित होता है । भारत में विजयादशमी का पर्व जिस प्रकार असत्य पर सत्य की तथा अधर्म पर धर्म की विजय का संदेश देता है उसी प्रकार रक्षाबंधन का पावन पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम और भाई का बहन की आजीवन रक्षा करने के संकल्प को याद कराता है । इसी प्रकार रंगों का त्योहार होली हमें संदेश देता है कि हम आपसी कटुता व वैमनस्य को भुलाकर अपने शत्रुओं से भी प्रेम करें ।
ईसाइयों का त्योहार क्रिसमस संसार से पाप के अंधकार को दूर करने का संदेश देता है तो मुसलमानों की ईद भाईचारे का संदेश देती है । इस प्रकार सभी त्योहारों के पीछे समाजोत्थान का कोई न कोई महान उद्देश्य अवश्य ही निहित होता है । लोग एक-दूसरे के करीब आते हैं जिससे आपसी वैमनस्य घटता है । त्योहारों के अवसर पर दान देने, सत्कर्म करने की जो परंपरा है, उससे सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने में मदद मिलती है ।
ये त्योहार मनुष्य के जीवन को हर्षोल्लास से भर देते हैं । इन त्योहारों से उसके जीवन की नीरसता समाप्त होती है तथा उसमें एक नवीनता व सरसता का संचार होता है । त्योहारों के आगमन से पूर्व ही मनुष्य की उत्कंठा व उत्साह उसमें एक सकारात्मक व सुखद परिवर्तन लाना प्रारंभ कर देते हैं । वह संपूर्ण आलस्य व नीरसता को त्याग कर पूरे उत्साह के साथ त्योहारों की तैयारी व प्रतीक्षा करता है ।
त्योहारों के शुभ अवसर पर निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी नए वस्त्र धारण करते हैं एवं समस्त दुख-अवसादों को भुलाकर त्योहार की खुशियाँ मनाते हैं । त्योहारों के अवसर पर पंडितों, गरीबों तथा अन्य लोगों को दान आदि देकर संतुष्ट करने की प्रथा का भी समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है । भूखे को भोजन, निर्धनों को वस्त्र आदि बाँटकर लोग सामाजिक समरसता लाने का प्रयास करते हैं ।