500 words essay on Lala Lajpat Rai in Hindi.
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लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के बनारस जिले में स्थित मुगलसराय नामक गांव में हुआ था | उनके पिता श्री शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे, जो शास्त्री जी के जन्म के केवल डेढ़ वर्ष बाद स्वर्ग सिधार गए | इसके बाद उनकी मां रामदुलारी देवी उनको लेकर अपने मायके चली गईं | शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके नाना के घर पर ही हुई | पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की माली हालत अच्छी नहीं थी, ऊपर से उनका स्कूल गंगा नदी के उस पार स्थित था | नाव से नदी पार करने के लिए उनके पास थोड़े-से पैसे भी नहीं होते थे | ऐसी परिस्थिति में कोई दूसरा होता तो अवश्य अपनी पढ़ाई छोड़ देता, किन्तु शास्त्री जी ने हार नहीं मानी, वे स्कूल जाने के लिए तैरकर गंगा नदी पार करते थे | इस तरह कठिनाइयों से लड़ते हुए छठी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे अपने मौसा के पास चले गए | 1920 ई. में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, किन्तु बाद में उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने काशी-विद्यापीठ में प्रवेश लिया और वहां से 1925 ई. में ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की | इसके बाद वे देश सेवा में पूर्णतः संलग्न हो गए |
गांधी जी की प्रेरणा से ही शास्त्री जी अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने बाद में काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि भी प्राप्त की, इससे पता चलता है कि उनके जीवन पर गांधी जी का काफी गहरा प्रभाव था और बापू को वे अपना आदर्श मानते थे | 1920 ई. में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण ढ़ाई वर्ष के लिए जेल में भेज दिए जाने के साथ ही उनके स्वतंत्रता संग्राम का अध्याय शुरु हो गया था | कांग्रेस के कर्मठ सदस्य के रूप में उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभानी शुरू की | 1930 ई. में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें पुनः जेल भेज दिया गया | शास्त्री जी की निष्ठा को देखते हुए पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस का महासचिव बनाया | ब्रिटिश शासन काल में किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई पद काँटों की सेज से कम नहीं हुआ करता था, पर शास्त्री जी 1935 ई. से लेकर 1938 ई. तक इस पद पर रहते हुए अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहे | इसी बीच 1937 ई. में वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने लिए गए और उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का संसदीय सचिव भी नियुक्त किया गया | साथ ही वे उत्तर प्रदेश कमेटी के महामंत्री भी चुने गए और इस पद पर 1941 ई. तक बने रहे | स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका के लिए देश के इस सपूत को अपने जीवनकाल में कई बार जेल की यातनाएं सहनी पड़ी थीं | 1942 ई. में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें पुनः जेल भेज दिया गया |
1946 ई. में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पन्त ने शास्त्री जी को अपना सभा सचिव नियुक्त किया तथा 1947 ई. में उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया | उनकी कर्तव्यनिष्ठा और योग्यता को देखते हुए 1951 ई. में उन्हें कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया | 1952 ई. में नेहरु जी ने उन्हें रेलमंत्री नियुक्त किया | रेलमंत्री के पद पर रहते हुए 1956 ई. में एक बड़ी रेल दुर्घटना की जिम्मेदारी लेते हुए नैतिक आधार पर मंत्री पद से त्यागपत्र देकर उन्होंने एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया | 1957 में जब इलाहाबाद से सांसद के लिए निर्वाचित हुए तो नेहरू जी ने अपने मंत्रिमंडल में परिवहन एवं संचार मंत्री नियुक्त किया | इसके बाद उन्होंने 1958 ई. में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की जिम्मेदारी सम्भाली | 1961 ई. में पं. गोविंद बल्लभ पंत के निधन के उपरांत उन्हें गृहमंत्री का उत्तरदायित्व सौंपा गया | उनकी कर्तव्यनिष्ठा एंव योग्यता के साथ-साथ अनेक संवैधानिक पदों पर रहते हुए सफलतापूर्वक अपने दायित्वों को निभाने का ही परिणाम था कि 9 जून, 1964 को वे सर्वसम्मति से देश के दूसरे प्रधानमंत्री बनाए गए |
शास्त्री जी कठिन से कठिन परिस्थिति का सहजता से साहस, निर्भीकता एंव धैर्य के साथ सामना करने की अनोखी क्षमता रखते थे | इसका उदाहरण देश को उनके पप्रधानमंत्रित्व काल में देखने को मिला | 1965 ई. में पाकिस्तान ने जब भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस किया, तो शास्त्री जी के नारे ‘जय जवान, जय किसान’ से उत्साहित होकर जहां एक ओर वीर जवानों ने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण हथेली पर लिए, तो दूसरी ओर किसानों ने अपने परिश्रम से अधिक से अधिक अन्न उपजाने का संकल्प लिया परिणामतः न सिर्फ युद्ध में भारत को अभूतपूर्व विजय हासिल हुई, बल्कि देश के अन्न भंडार भी पूरी तरह भर गए | अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ और साहस के बल पर अपने कार्यकाल में शास्त्री जी ने देश की कई समस्याओं का समाधान किया |
1965 ई. में भारत-पाकिस्तान युद्ध की समाप्ति के बाद जनवरी 1966 में संधि-प्रयत्न के सिलसिले में दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बैठक ताशकन्द में बुलाई गई थी | 10 जनवरी 1966 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खान ने एक सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर किए और उसी दिन रात्रि को एक अतिथि-गृह में शास्त्री जी की आकस्मिक मृत्यु हृदय-गति रुक जाने के कारण हो गई | उनकी मृत्यु से पूरा भारत शोकाकुल हो गया | शास्त्री जी के निधन से देश की जो क्षति हुई उसकी पूर्ति संभव नहीं, किन्तु देश उनके द्वारा तप, निष्ठा एंव कार्यों को सदा आदर और सम्मान के साथ याद करेगा | तीव्र प्रगति एवं खुशहाली के लिए आज देश को शास्त्री जी जैसे नि:स्वार्थ राजनेताओं की आवश्यकता है