6. अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि विरह दही।
7. हमार हरि-हारिल की लकड़ी।
8. सुनत जोग लागत है ऐसौ ज्याँ करुई ककरी।
9. सेवक सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिज लराई।।
10. सुनहु राम जेहि सिवधन तोरा। सहसवाहु सम सो रिपु मोरा ।।
name the type of alankar
Answers
Answer:
हमारे हरि हारिल की लकरी ।
मन - क्रम - वचन नंद - नंदन उर , यह दृढ़ करि पकरी ।
जागत सोवत स्वप्न दिवस - निसि , कान्ह - कान्ह जकरी ।
सुनत जोग लागत है ऐसो , ज्यौं करूई ककरी ।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए , देखी सुनी न करी ।
यह तौ 'सूर' तिनहिं लै सौंपौ , जिनके मन चकरी ।।
Answer:
यमक अलंकार
Explanation:
यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। शब्द की दो बार आवृति होना वाक्य का यमक अलंकार के अंतर्गत आने के लिए आवश्यक है।
यमक अलंकार की परिभाषा
यमक शब्द का अर्थ होता है- दो, जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है। अर्थात जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है।
सूरदास के पद का भावार्थ/हिंदी मीनिंग
गोपियाँ श्री कृष्ण जी से कह रही हैं की हमारे मन में कृष्ण के प्रति अनन्य और अटूट प्रेम है जो तुम्हारे योग के सन्देश से कम नहीं होगा अपितु अधिक बढ़ जाएगा. जैसे हारिल (एक पक्षी) अपन पंजों में विशेष प्रकार की लकड़ी को पकडे रहता है वैसे ही हमने अपने हृदय में श्री कृष्ण को मन वचन और क्रिया से पकड़ रखा है. रात दिन सोते जागते हमने कृष्ण जी को ही पकड़ रखा है. यही कारण है की तुम्हारा यह योग का सन्देश हमको कडवी ककड़ी के समान लगता है. तुम जो ये ब्याधि (विकार) लाए हो इसका हमारे ऊपर कोई असर नहीं होने वाला है. तुम तो यह सन्देश उनको सुनाओ जिनका मन पूर्ण रूप से श्री कृष्ण के प्रति समर्पित नहीं है. हम श्री कृष्ण के प्रेम में पूर्ण रूप से रंगी हुई हैं इसलिए तुम्हारी बातों का हम पर कोई असर नहीं होने वाला है.
अब इन जोग सँदेसनि सुनि-सुनि, बिरहिनि विरह दही।
https://brainly.in/question/19879017
Yamak Alankar ki paribhasha kya hai
https://brainly.in/question/1272545
#SPJ2