Hindi, asked by gauravsabhrawal6, 3 months ago

6. भाषाई अस्मिता के निर्माण में लिंग और वर्ग की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।​

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Answered by baliyanurvashi040
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Explanation:

Bhasha Asmita ke Nirman Mein Ling aur varg ki Bhumika ka vishleshan kijiye

Answered by unsarabbi
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Explanation:

प्रत्येक प्राणी के जीवन में जैव-सामाजजक व्यविार देखने को ममलते िैं लेककन मानव के जीवन में सामाजजक-

साांस्कृततक व्यविार देखने को ममलता िैजो उसे अन्य प्राणणयों से ववमिष्ट बनाता िै| यि अांतर प्रमुख रूप से

भाषा के द्वारा तनममित िोता िै| व्यजतत के व्यजततत्व को समाज के पररवेि में समझा जा सकता िै| सांस्था

और सांस्थागत व्यविार को समाजिास्री जाजि िरबटि मीड समाज किते िैं| सांस्थागत व्यविार का अथि िोता िै

तनयांत्ररत व्यविार| व्यजतत द्वारा भूममका-ग्रिण करना, समाज में स्वयां को तनयांत्ररत करना िै| इसी त्रबदां ुपर ‘स्वां’

(सेल्फ/माइांड) और ‘दसू रे’ (अदसि) आकर ममलते िैं, पारस्पररक कियाएां करते िैं, एक-दसू रे को प्रभाववत करते िैं|

यिी कारण िै कक मीड समाज को व्यजतत से बािर एक सांरचना मानते िैं| उनके मलए समाज वस्तुपरक यथाथि

िै|अक्मििा का अथि िै- पिचान और भाषाई अजस्मता से तात्पयि िै- ववमिष्ट भाषा बोलने वालों की अपनी पिचान।

एक व्यजतत के पूरे जीवन काल में

अजस्मता के तनमािणक रूप में तनम्प्न पररवेिीय कारक िोते िैं1. पररवार से सांबांधधत कारक- लालन-पालन, माँ-वपता, नातेदारी, पररवार की सांरचना

2. िैक्षणणक सांस्थाओां और राष्र से सांबांधधत कारक- भाषा, ज्ञान, कौिल के साथ-साथ ममरों, मिक्षकों और

िासन-प्रिासन का प्रभाव

3. सामाजजक तथा साांस्कृततक कारक- पड़ोस, सामाजजक सांस्थाएां, धमि, साांस्कृततक व्यविार, सामाजजक

जस्थतत, सांस्कृतत का प्रभाव

ल िंग: भाषा में मल ांग के वल व्याकरण का ववषय निीां िै बजल्क समाज में अपनी अजस्मता का भी प्रश्न िै|

आधुतनक धचन्तक इसे सेतस और जेंडर के दोिरे रूप में देखते िैं| एक प्राकृततक िैदसू रा साांस्कृततक| एक

तीसरा वगि भी िै जजसे लगातार इन दो वगों के बीच अपनी जगि तलािनी पड़ती िैतयोंकक वे न पूणि स्री िै

न पुरुष, तो उनके सामने भाषाई हदतकते आती िैं| इसी कारण वे व्यजततत्व से लेकर सामाजजक अजस्मता तक

प्रभाववत िोते िैं|

स्री और पुरुष वगि की भाषा का भी भाषाई अजस्मता की दृजष्ट से अध्ययन ककया जा सकता िै। प्रमसद्ध

भाषाववद् लेकऑफ का यि मानना िै कक जस्रयों का ि्द चयन पुरुषों से मभन्न िोता िै। उनके अनुसार,

आकषिक, मोिक, दैवीय, प्यारा, मधुर जैसे वविेषण साधारणतः केवल जस्रयों द्वारा प्रयोग में लाए जाते िैं।

पुरुषों की तुलना में जस्रयों की भाषा अधधक ववनम्र एवां मानक िोती िैतथा वे वजजति एवां अश्लील ि्दों का भी

कम प्रयोग करती िैं। इसमलए पुरुषों की भाषा कठोर और तनणियात्मक तथा स्री की भाषा मिष्ट और

ववकल्पमूलक हदखाई पड़ती िै| मल ांग की असमानता सामाजजक िै और यि नातेदारी में आ कर और भी जहटल

िो जाती िै| अपभाषा (गामलयाँ), आदेि और सांबोधन की ि्दावली के अध्ययन इस ओर स्पष्ट इिारा करते िैं|

पुरुषप्रधान समाज में अपभाषा और गामलयों के प्रयोग में स्री सांबांधों और अांगों का अधधक प्रयोग िोता िै जो

लैंधगक अजस्मता की टकरािट और वचिस्व हदखाता िै|

वगग: एक वविेष प्रकार की सामान लक्षणों वाली वस्तुओां का समूि वगि किलाता िै| यिाँ वगि का सांबांध व्यजतत

के सामाजजक पक्ष से िै| एक िी व्यजतत अपने लक्षणों के आधार पर एक साथ एक िी समय में ववमभन्न वगों

में िो सकता िै| वगि का मूल आधार मभन्नता िै| जैसे- उच्च, मध्य तनम्प्न वगि, मिक्षक्षत और अमिक्षक्षत वगि,

पुरुष और स्री वग,ि युवा और बुजुगि वग,ि ििरी और ग्रामीण वगि, िासक और िामसत वग,ि बिुसांख्यक और

अल्पसांख्यक वगि आहद| िर वगि की भाषा में कोई न कोई भाषाई मभन्नता देखने को ममलेगी | यिी वगि

अजस्मता का भी माध्यम बन जाता िै| व्यजतत इस अजस्मता से जुड़ा भी रिता िैऔर उच्च की ओर जाने के

मलए अपने व्यजततत्व में पररवतिन भी करता रिता िै|सामाजजक अजस्मता का भाषा से गिरा सांबांध िोता िै। दो अलग-अलग समाज के मध्य िम भाषा के आधार

पर भी अांतर देख सकते िैं। यिाँ तक की एक भाषा समाज में भी ववमभन्न वगों की अजस्मता भाषा के द्वारा

व्यतत िो जाती िै। ववमभन्न वगि अपनी ववमिष्ट भावषक क्षमता, ि्दावली एवां भाषा-िैली के माध्यम से स्वयां

की अजस्मता को उजागर कर देते िैं। उदािरणस्वरूप समाज में तनम्प्न एवां उच्च वगि की भाषा, मिक्षक्षत एवां

अमिक्षक्षत वगि की भाषा, ििरी एांव ग्रामीण वगि की भाषा, अधधकारी एांव अधीनस्थ वगि की भाषा आहद को िम

देख सकते िैं। इसी प्रकार आधथिक रूप से तनम्प्न वगि, मध्य वगि और उच्च वगि की भाषाओां में अांतर देखने को

ममलता िै|

धमि एवां जातीयता के आधार पर बनी अजस्मता भी मित्वपूणि िोती िैतथा इसका भाषा से गिरा जुड़ाव िोता

िै। भारत में रिने वाले हिदां -ूमुजस्लम एवां ईसाइयों की भाषा का अध्ययन करने पर िम देख सकते िैंकक हिदां ी

बोलते िुए हिदां ओु ां का झुकाव सांस्कृत के प्रतत, मुसलमानों का अरबी-फारसी के प्रतत तथा ईसाइयों का अांग्रेज़ी के

प्रतत िोता िै। धमि एवां जाततगत पिचान बनाए रखने के मलए िी अमेररका में रिने वाला हिदां ूपररवार वववाि के

समय सांस्कृत में मांरों का उच्चारण करवाता िै। भाषा को ककसी धमि वविेष से जोड़कर िमेिा निीां देखा जा

सकता। बांग्लादेि में इस्लाम को मानने वाले बिुसांख्यक लोगों ने अरबी-फारसी अथवा उदिूके स्थान पर बाांग्ला

भाषा को स्वीकार कर भाषा और धमि के गिरे सांबांध के ममथ को भी एक प्रकार से तोड़ा िै।

जातीय पुनगठि न की प्रकिया सामाजजक िोती िै। जिाँकोई बोली सामाजजक, राजनीततक एवां आधथिक कारणों से

अधधक मित्त्व प्राप्त कर लेती िै तथा आगे चलकर सामाजजक अजस्मता का आधार बन जाती िै। वास्तव में

भोजपुरी, अवधी, िररयाणवी, मालवी आहद को हिांदी की बोली स्वीकारने के पीछे समान सामाजजक चेतना और

सांस्कृतत के आधार पर बनी जातीय अजस्मता िै। इसी प्रकार हिदां ी एवां उदिूका जो सवाल िै, वि वास्तव में दो

भाषाओां की सांरचनागत भेद या समानता का सवाल निीां िै। वि भाषाई अजस्मता का सवाल िै। एक समुदाय

वविेष उदिूभाषा में अपनी पिचान पाता िै। यि भाषा उसे अपने िोने का, अपनी पिचान का एिसास हदलाती

िै।

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