6. ईश्वरभक्ति आपके अपने कर्म से कैसे होती है?
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जो मनुष्य अपने सब कर्मों को परमात्मा की सेवा में अर्पण कर देता है वही सच्चा भक्त है | इसका भाव यह है कि-जो भी कर्म किये जाएँ फल सहित उनको अर्पण कर देना सच्ची ईश्वर भक्ति कहलाती है | यह बात ध्यान रखनी चाहिए हमारे मन,वचन,कर्म ऐसे हों कि- जब भी कोई वस्तु भेंट करें तो भक्त को प्रभु के सामने शर्म न आए ,लज्जा न आए | अर्थात् जो पुरूष सब कर्मों को परमात्मा को अर्पण करके , स्वार्थ को त्याग करके कर्म करेगा वह जल में कमल के पत्ते के समान पाप से बचा रहेगा | यही ईश्वरप्रणिधान का भाव है |
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Explanation:
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ईश्वर प्रधान का अर्थ है अपने सब कर्मों को ईश्वर अधीन मानकर उसे की सेवा में अर्पण कर देना |भाव यह है कि जो भी कर्म किए जाएं फल सहित उनको ईश्वर को अर्पण कर देना |ईश्वर पर निधान की भावना रखने वाला भक्त जो भी कर्म करेगा उसे पूरी सावधानी से करेगा क्योंकि वह जानता है कि उसका सारा कर्म ईश्वर को अर्पण करने के लिए ही है| इस बात से पता चलता है कि ईश्वर भक्ति हमारे अपने कर्म से होती है