6) जहीहि भीति भज-भज शक्तिम् । विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम् ।। कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम् । सदैव पुरतो निधहि चरणम्।। (क) कि जहीहि? (ख) का भज? (ग) अनुरक्तिं कस्मिन् विधेहि? (घ) ध्येय-स्मरणं कदा कुरु? (ड.) कुरु- इत्यस्य क्रियापदस्य लकारं लिखत ।
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(ख) जहीहि भीतिं भज भज शक्तिं।
विधेहि राष्ट्र तथाअनुरक्तिम् ।
कुरु कुरु सततं ध्येय - स्मरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम् ।।
इस श्लोक का अर्थ है कि हमें डर को छोड़ देना चाहिए और ताकत को हमेशा याद रखना चाहिए | उसी प्रकार अपने देश से प्रेम करना चाहिए उसकी रक्षा करनी चाहिए | साथ में , अपने उद्देश्य और लक्ष्य को याद रखना चाहिए और सदैव आगे ही बढ़ना चाहिए , आगे की और कदम रखना चाहिए |
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