(6),मालवा की धरती पर कौन -कौन राजा हुए है ?
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parmraj vshiy rajjo ne malva ki rajdhani dharanagiri se Aathvi shtabhi se lekar chudavi shtabhi se purvadh tak rajy kiya tha
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मालव जनजाति का उल्लेख सर्वप्रथम ई. पू. चौथी सदी में मिलता है, जब यह जाति सिकंदर से युद्ध में पराजित हुई थी। ये मालव प्रारंभ में पंजाब तथा राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थी, लेकिन सिकंदर से पराजित होकर वे अवन्ति (वर्तमान उज्जैन) व उसके आस-पास के क्षेत्रों में बस गये । उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा अवन्ति को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया। दशार्ण की राजधानी विदिशा थी तथा अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी। कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये। इस प्रकार एक भौगोलिक घटक के रूप में 'मालवा' का नाम लगभग प्रथम ईस्वी सदी में मिलता है। मालवा पर करिब 547 वर्षो तक भील राजाओ का शासन रहा,जिनमें राजा धन्ना भील प्रमुख रहे। राजा धन्ना भील के ही एक उत्तराधिकारी ने 730 ईसा पूर्व में दिल्ली के सम्राट को चुनौती दी थी , इस प्रकार मालवा उस समय एक शक्तिशाली साम्राज्य था।
मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य के समय के शासक राजा गरिमध्वज भील थे , वे अपनी बहादुरी और शौर्य के लिए जाने जाते थे , चन्द्रगुप्त मौर्य के मालवा आक्रमण के दौरान उनका सामना भील राजा से हुआ , लेकिन चाणक्य की नीति के फलस्वरूप दोनों राजाओं में मित्रता हो गई और दोनों ने मिलकर मगध साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध किया।
राजा भोज परमार या पंवार वंश के नवें राजा थे। परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। भोज ने बहुत से युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की जिससे सिद्ध होता है कि उनमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उनके जीवन का अधिकांश युद्धक्षेत्र में बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। उन्होंने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है।
प्रद्योत वंश
नन्दों के अधीन मालवा
मार्ययुगीन मालवा- चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धननंद की हत्या कर चंदगुप्त मौर्य के नेतृत्व में मौर्य वंश की स्थापना की। प्रमाणों से पता चलता है कि पश्चिम मालवा (उज्जयिनी) तथा पूर्वी मालवा (विदिशा) चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर अशोक के शासन- काल तक मौर्य साम्राज्य के अभिन्न अंग थे।
जनपदकालीन मालवा- मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद पूर्वी मालवा में धर्मपाल, इंद्रगुप्त तथा शिवगुप्त का राज्य स्थापित हुआ।
शुंग काल में मालवा -पुष्यमित्र का साम्राज्य दक्षिण में नर्मदा तक फैला हुआ था तथा विदिशा उसके राज्य का एक प्रमुख नगर था। "मालविकाग्निमित्रम' के अनुसार पुष्यमित्र वे शासन काल में उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा में गोप्तु (उपराजा) के रुप में शासन का संचालन करता था। अग्निमित्र ने विदर्भ के शासक यज्ञसेन के साथ युद्ध करके विदर्भ के एक बड़े हिस्से पर अधिकार कर लिया।
सन् 47 ई. पू. में पुष्यमित्र की मृत्यु हो गयी। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार इस वंश में कुल 10 शासक हुए --
- क. पुष्यमित्र
- ख. अग्निमित्र
- ग. वसुज्येष्ठ
- घ. वसुमित्र
- ड़. अंध्रक (ओद्रक)
- च. पुलिद्वक
- छ. घोष
- ज. वज्रमित्र
- झ. भागभद्र और
- ट. देवभूति।
सातवाहन कालीन मालवा- सिमुक ने पूर्वी मालवा (विदिशा) क्षेत्र में शासन करने वाले कण्वों तथा शुंगों की शक्ति को समाप्त कर सातवाहन वंश की स्थापना की है।
मालवा में शकों का शासन
नाग वंश कालीन मालवा -विदिशा में शासन करने वाले नाग- वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनन्दि, शिशुनन्दि तथा यशनन्दि का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार विदिशा नागवंशीय राजाओं का गढ़ था।
गुप्तकालीन मालवा
समुद्रगुप्त का शक विजय
रामगुप्त
चंद्रगुप्त द्वितीय
कुमारगुप्त
स्कंदगुप्त
वर्द्धन वंश -
- आदित्यवर्द्धन (490 ई.),
- प्रकाशधर्मा (भगवत्प्रकाश)
- विष्णुवर्द्धन उर्फ यशोधर्मा (532 ई),
- द्रव्यवर्द्धन।
गुप्तोत्तरकालीन मालवा
परवर्ती गुप्त कालीन मालवा -
1. कृष्णगुप्त
2. हर्षगुप्त
3. जीवन गुप्तपहली
4. कुमार गुप्त
5. कॉमोडरगुप्ता
6. महासेनगुप्त
7. माधवगुप्त
8. अदितसेन रहस्य
9. देवगुप्त
10. विष्णुगुप्त
11. जीवन गुप्त
पुष्यभूतिवंश