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मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
जाके सिर भोर भुकट, भेरो पति सोई
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ?
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई
अँसुवन जल सीचि-सींचि प्रेम बेलि बोई ।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई ।।
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई ।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई ।।
भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी 'भीरा लाल गिरिधर तारो अब मोही । पहली पाँच पंक्तियों का का अर्थ
Answers
**कवियत्री कहती है कि, उनके सबकुछ सिर्फ उनके आराध्य है अर्थात गिरधर गोपाल है दूसरा कोई नहीं है।
** जिनके सिर पर मोर मुकुट है वहीं उनके आराध्य एवम वहीं उनके पति है ।
** सभी लोग कहते है कि वो कुल की कानी है, अर्थात कुल की नास करने वाली है।
** संतों के साथ बैठकर सारे लाज - सर्म खो दी है अर्थात सारे लाज - सरम नष्ट हो गए है।
** आशु के जल को सीच - सीच कर उन्होंने बड़े मेहनत
एवम स्नेह से प्रेम के बीच को बोया है।
** अब उनके सुख के दिन आगए अर्थात उन्होंने अपने स्नेह और मेहनत से जो बीच बोए थे अब वह बैल रूपी फल मै परिवर्तन हो गए है और अब वह फल फैल गए है जो उनके लिए बहुत सुखद अनुभव है।
** कवयित्री अपने आराध्य के लिए बहुत स्नेह एवम प्रेम से दूध को मथती है।
** जिसे निकली माखन को वह निकाल लेती है और छाछ को फेक देती है।
** जहा भक्तो को देखकर उनको आनंद अनुभव होता है वहीं जग अर्थात समाज के मानसिकता को देख वो दुखी हो जाती है।