Hindi, asked by hetalnshah30383, 8 months ago

(6) प्रगति, न्याय और मानवधर्म के लिए हमारा क्या कर्तव्य है?​

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Answered by manu3195
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प्रगति न्याय और मानव धर्म से हमारा यह प्रथम कर्तव्य है कि मनुष्य जीवन तो सभी जी रहे हैं। जन्मे, पढ़ाई की, नौकरी की, शादी की, पिता बने, दादा बने और फिर अरथी उठ गई। जीवन का क्या यही क्रम होगा? इस प्रकार जीवन जीने का अर्थ क्या है? जन्म क्यों लेना पड़ता है? जीवन में क्या प्राप्त करना है? मनुष्य देह की प्राप्ति हुई इसलिए खुद मानव धर्म में होना चाहिए। मानवता सहित होना चाहिए, तभी जीवन धन्य हुआ कहलाएगा।

मानवता की परिभाषा खुद से ही तय करनी है। ‘यदि मुझे कोई दु:ख दे तो मुझे अच्छा नहीं लगता है, इसलिए मुझे किसी को दु:ख नहीं देना चाहिए।’ यह सिद्धांत जीवन के प्रत्येक व्यवहार में जिसे फ़िट (क्रियाकारी) हो गया, उसमें पूरी मानवता आ गई।

मनुष्य जन्म तो चार गतियों का जंक्शन (केन्द्रस्थान) है। वहाँ से चारों गतियों में जाने की छूट है। किन्तु, जैसे कारणों का सेवन किया हो, उस गति में जाना पड़ता है। मानव धर्म में रहें तो फिर से मनुष्य जन्म देखोगे और मानव धर्म से विचलित हो गए तो जानवर का जन्म पाओगे। मानव धर्म से भी आगे, सुपर ह्युमन (दैवी गुणवाला मनुष्य) के धर्म में आए और सारा जीवन परोपकार हेतु गुज़ारा तो देवगति में जन्म होता है। और यदि मनुष्य जीवन में आत्मज्ञानी के पास से आत्म धर्म प्राप्त कर ले, तो अंतत: मोक्षगति-परमपद प्राप्त कर सकते हो।

परम पूज्य दादाश्री ने तो, मनुष्य अपने मानव धर्म में प्रगति करे ऐसी सुंदर समझ सत्संग द्वारा प्राप्त कराई है। वह सभी प्रस्तुत संकलन में अंकित हुई है। वह समझ आजकल के बच्चों और युवकों तक पहुँचे तो जीवन के प्रारंभ से ही वे मानव धर्म में आ जाएँ, तो इस मनुष्य जन्म को सार्थक करके धन्य बन जाएँ, वही अभ्यर्थना।

Answered by cutiepie204
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प्रगति न्याय और मानव धर्म से हमारा यह प्रथम कर्तव्य है कि मनुष्य जीवन तो सभी जी रहे हैं। ... मनुष्य देह की प्राप्ति हुई इसलिए खुद मानव धर्म में होना चाहिए। मानवता सहित होना चाहिए, तभी जीवन धन्य हुआ कहलाएगा।

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