Hindi, asked by deepamanral93, 5 months ago

6. पद्यांश के आधार पर सही उत्तर छाँटिए:-
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कमी,
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करे सभी।
हुई न यों
सुमृत्यु
तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु-प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
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(I) प्रस्तुत काव्यांश के कवि हैं:-
(क) निदा फाज़ली
(ख) रवींद्रनाथ टैगोर
(ग) कैफी आजमी
(घ) मैथिलीशरण गुप्त
(II) मर्त्य किसे कहा गया है?
(क) देवों को
(ख) संसार को
(ग) मनुष्य को
(घ) सभी को
(III) कवि न किस प्रकार के मनुष्यों को मनुष्यता के लक्षणों से परे माना है?
(क) परोपकारी मनुष्य
(ख) दूसरों को भला करने वाले
(ग) दूसरों के लिए जीने वाले (घ) अपने लिए जीने वाले
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Answers

Answered by Anonymous
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Answer:

  • उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है। हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। साथ में हमें ये भी अहसास होना चाहिए कि हम अमर नहीं हैं। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है।
Answered by Anonymous
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Explanation:

==>>> सामंतवाद एक ऐसी मध्ययुगीन प्रशासकीय प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें स्थानीय शासक उन शक्तियों और अधिकारों का उपयागे करते थे जो सम्राट, राजा अथवा किसी केन्द्रीय शक्ति को प्राप्त होते हैं=। सामाजिक दृष्टि से समाज प्रमुखतया दो वर्गों में विभक्त था- सत्ता ओर अधिकारों से युक्त राजा और उसके सामंत तथा अधिकारों से वंचित कृशक और दास। इस सामंतवाद के तीन प्रमुख तत्व थे - जागीर, सम्प्रभुता और संरक्षण।

==>>> कानूनी रूप से राजा या सम्राट समस्त भूमि का स्वामी होता था। समस्त भूमि विविध श्रेणी के स्वामित्व के सामंतों में और वीर सैनिकों में विभक्त थी। भूमि, धन और सम्पित्त का साधन समझी जाती थी। सामंतों में यह वितरित भूिम उनकी जागीर होती थी। व्यावहारिक रूप में इस वितरित भूमि के भूमिपति अपनी-अपनी भूमि में प्रभुता-सम्पन्न होते थे। इन सामंतों का राजा या सम्राट से यही संबंध था कि आवश्यकता पड़ने पर वे राजा की सैनिक सहायता करते थे और वार्षिक निर्धारित कर देते थे। समय-समय पर वे भंटे या उपहार में धन भी देते थे। ये सामतं अपने क्षत्रे में प्रभुता-सम्पन्न होते थे और वहां शान्ति और सुरक्षा बनाये रखते थे। वे कृषकों से कर वसूल करते थे और उनके मुकदमे सुनकर न्याय भी करते थे।

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