6.
उत्तर लिसिस
2X3-6
अशा
११
निम्नलिखित
गद्याश को
पटकर पूछे
गए प्रश्नों के
मैं नहीं जानता इस सन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं
कि उसकी मृत्यु पर कोई शेगा। लेकिन उस क्षण शैते
बालो की कमी नही थी।
इस तरह हमारे बीच से बह चला गया जो
हममें से सबसे अधिक छायादार फल फुल गद्य से
और सबसे अलग सबका होकर सबसे ऊंचाई पर मानवीय
करूणा की दिव्य चमक मे लहलहाता सठा या जिसकी स्मृति
हम सबके मन में जो उनके निकट ये किसी यज्ञ की पवित्र
आग की आंच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र
ज्योति की में
भाहावनत हुँ।
(ल) गद्याश में संन्यासी किसे कहा गया है और उसकी तुलना बैंसे
तनसे और क्यो की गईहै,
(2) लेखक के मन में फादर की स्मृति कैसी बनी रहेगी।
(3)नम आंखो को गिनना श्याही फैलाता है। जैसा लेखक ने नयो कध।
याद
Answers
Answer:
पंडित अन्नपूर्णानद जी ने इस कहानी में बताया है कि लाला झाऊलाल नामक व्यक्ति बहुत अमीर नहीं है। पर उन्हें गरीब भी नहीं कहा जा सकता। पत्नी के ढाई सौ रूपए माँगने तथा अपने मायके से लेने की बात पर अपनी इज्जत के लिये सात दिन में रुपये देने की बात की।
पाँच दिन बीतने पर अपने मित्र बिलवासी को यह घटना सुना कर पैसे की इच्छा रखी पर उस समय उनके पास रूपए न थे। बिलवासी जी ने उसके अगले दिन आने का वादा किया जब वह समय पर न पहुँचे तो झाऊलाल चिंता में छत पर टहलते हुए पानी माँगने लगे। पत्नी द्वारा लाये हुए नापसंद लोटे में पानी पीते हुए लोटा नीचे एक अंग्रेज पर गिर गया।
अंग्रेज एक लंबी चौड़ी भीड़ सहित आँगन में घुस गया और लोटे के मालिक को गाली देने लगा। बिलवासी जी ने बड़ी चतुराई से अंग्रेज को ही मुर्ख बनाकर उसी लोटे को अकबरी लोटा बताकर उसे 500 रूपए में बेच दिया। इससे रुपये का इंतजाम भी हो गया और झाऊलाल की इज्जत भी बच गई। इससे लाला बहुत प्रसन्न हुए उसने बिलवासी जी को बहुत धन्यवाद दिया।
बिलवासी ने पत्नी के संदूक से लाला की मदद के लिये निकले गए ढाई सौ रुपये उसके संदूक में वापस रख दिए फिर चैन की नींद सो गए।