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(vi) गद्यांशका
(11) मूल शब्द
आज हमें विनम्रता की भावना की आवश्यकता है। हमें यह रूप त्याग देना
चाहिए कि हम ठीक है और हमारे विरोधी गलत या यह काम जानते हैं कि ।
पूर्ण नहीं हैं परन्तु निश्चित रूप से अपने शाओं से गयी है। वर्षों से सामूहिक गा
देखते देखते हम निष्तर हो गए हैं और भयानकताओं को देख देखकर कठोर हो गए
हैं। बात उन्नत राष्ट्रों में बड़ी मात्रा में धरता है और बहुत पिछड़ी हुई जातियों में भी
सभ्यता का काफी बड़ा अंश है। एक जमाने में सभ्यताएँ बाहर से बहारा नष्ट कर दी
गई थी, मगर हमारे समय में इस बात की संभावना है कि वे अंदर से उन बारों द्वारा नपर
कर दी जाएगी जिन्हें हम पैदा कर रहे हैं। प्रौद्योगिकी पति के समतुल्य एक तिया
मोति करनी पड़ेगी। हमें भूतन मानवीय सम्बन्धों का विकास करना ही पड़ेगा और राष्ट्रों
को बौद्धिक संघटना तथा नैतिक ऐक्य को प्रोत्साहित करना ही होगा। सरकारों को भी
एक पदय, एक अंत करण, एक भावना कि हम सब जाति और वर्ग के बंधनों से परे
एक ही बिरादरी के सदस्य है-का विकास करना चाहिए।
यदि विश्व निष्ठा की भावना बढ़ानी है, तो हमें जीवन की दूसरी पराम्पराओं से
गुण ग्रहण की तृत्ति पैदा करनी होगी। यह देश बहुत दिनों से अनेक संस्कृतियों-आर्य,
द्रविड़, हिंदू, बौद्ध, यहूदी, पारसी, मुसलमानी और खिष्टीय का मिलन स्थल है। आज
जब संसार सिकुड़ता जा रहा है, तो सभी जाति एवं संस्कृतियों के इतिहास हमारे अध्ययन
के विषय बनने चाहिए। यदि हम एक दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह जानना चाहते हैं, तो
हमें अपने अलगाव की वृत्ति और बड़प्पन की भावना छोड़ देनी चाहिए और मान लेनी
चाहिए कि दूसरी संस्कृतियों के दृष्टिकोण भी उतने ही उचित हैं और उनका प्रभाव भी
उतना ही शक्तिमान है, जितना हमारा है। मानव जाति के इतिहास के इस संकटकाल में
हमें मानवीय प्रकृति को पुन: नूतन हंग पर गठित करने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध
में प्राच्य पाश्चात्य अवबोध के लिए 'यूनेस्को' जो मूल्यवान कार्य कर रहा है, उसकी
हम प्रशंसा करते हैं।
मैंअर
मुझे
मुझे
फिर
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X c no no no no no no no no no no no no ii no extra urgent r a no no I am no no
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