7. अंत में वह क्यों कहता है कि 'हम पशु दधीचि के अनुयायी हैं, यह भूल न जाना'? (मूल्यपरक प्रश्न)
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महर्षि दधीचि वेद शास्त्रों आदि के पूर्ण ज्ञाता और स्वभाव के बड़े ही दयालु थे। अहंकार तो उन्हें छू तक नहीं पाया था। वे सदा दूसरों का हित करना अपना परम धर्म समझते थे। उनके व्यवहार से उस वन के पशु-पक्षी तक संतुष्ट थे, जहाँ वे रहते थे। एक ख्यातिप्राप्त महर्षि थे तथा वेद-शास्त्रों के ज्ञाता, परोपकारी और बहुत दयालु थे। उनके जीवन में अहंकार के लिए कोई जगह नहीं थी। वे सदा दूसरों का हित करने के लिए तत्पर रहते थे। जहां वे रहते थे, उस वन के पशु-पक्षी तक उनके व्यवहार से संतुष्ट थे। वे इतने परोपकारी थे कि उन्होंने असुरों का संहार के लिए अपनी अस्थियां तक दान में दे दी थी।
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