Hindi, asked by srinidhi01, 3 months ago

7. भ्रूणहत्या का मतलब क्या है ? उसे हम कैसे रोक सकते हैं ?​

Answers

Answered by veenuparihar143
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Answer:

कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों को प्राथमिकता देने तथा कन्या जन्म से जुड़े निम्न मूल्य के कारण जान बूझकर की गई कन्या शिशु की हत्या होती है। ये प्रथाएं उन क्षेत्रों में होती हैं जहां सांस्कृतिक मूल्य लड़के को कन्या की तुलना में अधिक महत्व देते हैं।

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Explanation:

उड़ीसा राज्य में महिला तथा बाल कल्याण विभाग के प्रधान सचिव सतीश अग्निहोत्री का कहना है, "जहाँ-जहाँ पर महिलाओं की श्रम में भागीदारी अधिक है वहाँ यह समस्या कम है. लड़की को अवांछित बनाने वाले सामाजिक परिवेश को ही हमें बदलना होगा."

अग्निहोत्री इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि स्त्रियों को श्रम भागीदारी ही काफ़ी नहीं बल्कि उनके कार्य करने के स्थान पर उनकी भौतिक सुरक्षा का इंतज़ाम करना भी ज़रूरी है क्योंकि क़ानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति का प्रभाव सबसे अधिक कमज़ोर वर्ग पर ही पड़ता है.

कश्मीरी महिलाओं का प्रदर्शन

कश्मीर में भी समस्या बढ़ गई है

लड़कियों की संख्या तेज़ी से घटने का एक ख़ास कारण यह भी माना जाता है कि भारत सरकार के जनसंख्या नियंत्रण अभियान में ख़ामियाँ रही हैं और इसमें अब ज़बरदस्ती का पहलू भी शामिल किया गया है.

कल्याणी मेनन कहती हैं कि आंध्र प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में सरकार ने दो से अधिक बच्चे रखने वाले माता-पिता को कुछ अधिकारों से वंचित करने की नीति अपनाई है.

मिसाल के तौर पर तीन बच्चों की माँ को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, यदि वह सरकारी कर्मचारी है तो उसे प्रसव के लिए अवकाश नहीं दिया जाता. तीसरे बच्चे को मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाऐं प्रदान नहीं की जातीं.

कल्याणी सेन कहती हैं कि बेशक इस नीति से तीसरे बच्चे के मानवाधिकारों का हनन होता है, साथ ही उसके माता-पिता को मजबूर किया जाता है कि वो किसी भी तरीक़े से इस तीसरा बच्चा पैदा करने से बचें और यदि वो चाहें कि दो बच्चों में से कम से कम एक लड़का हो तो दूसरी बार लड़की के गर्भधारण पर अवश्य ही गर्भपात कराएगें.

भारत सरकार तत्काल जनसंख्या नियंत्रण प्रक्रिया पर पुनर्विचार करने पर राज़ी नहीं.

केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने अब तक महिलाओं के विकास के लिए किसी ख़ास योजना की घोषणा नहीं की है लेकिन महिला उत्थान के लिए काम करने वाले संगठनों की ओर से सरकार पर दवाब लगातार बढ़ रहा है जिसका कुछ ठोस नतीजा निकलने की उम्मीद की जा सकती है.

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