7. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि
बोले बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुटारू । चहत उड़ावन पूँकि पहारू ।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
देखि कुटारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ॥
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(क)लक्ष्मण हंसकर व्यंग्य करते हुए कोमल वाणी से कहते हैं -अहो मुनीश्वर !आप syanya को महान योद्धा मानते हैं lमुझे बार-बार कुल्हाड़ी दिखाते हैं तथा funk से पहाड़ उड़ाना चाहते हैंl
(ख)यहां कोई कुम्हड़े के छोटे से फल की भांति कमजोर या निर्बल नहीं है जो तर्जनी उंगली को देखकर ही मर जाए ll
मैंने जो कहा वह आपकी कुल्हाड़ी धनुष बान देखकर अभिमान के साथ कहा l
(ग)विश्वामित्र जी ने ह्रदय me हंसकर कहा- परशुराम जी को हरा ही हरा सूझ रहा है (अर्थात सर्वत्र विजय होने के कारण यह श्री राम लक्ष्मण को भी साधारण क्षत्रिय ही समझ रहे हैं ),किंतु यह फौलाद की बनी हुई खांड है रस की khanड की तरह नहीं है जो मुंह में लेते ही गल जाए lखेद है, मुनि अब भी नासमझ बने हुए हैं ,इनके प्रभाव को नहीं समझ रहे हैं l
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कवि कहना चाहता है कि राधिका की सुंदरता और उज्ज्वलता अपरंपार है। स्वयं चाँद भी उसके सामने इतना तुच्छ और छोटा है कि वह उसकी परछाईं-सा है। इसमें व्यतिरेक अलंकार है। व्यतिरेक में उपमान को उपमेय के सामने बहुत हीन और तुच्छ दिखाया जाता है।