7. "जब मैंने पहली बार बस यात्रा की " इस विषय पर (80 से 100) शब्दों में अनुच्छेद
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मेरी पहली बस यात्रा
मैंने सदा पापा की कार या वैन में ही सफ़र किया था। पाठशाला घर के। पास होने के कारण वैन अधिक सुविधाजनक रहती थी। इस कारण मैंने कभी बस में प्रवेश करके भी नहीं देखा था।
पाठशाला से पास के संग्रहालय तक जाने का अवसर मिला तो बस में सवार होना पड़ा। इतनी ऊँची और विशाल बस में पैर रखने पर मुझे डर अनुभव हुआ।
मित्रों ने मुझे खिड़की के साथवाली सीट पर बिठा दिया। वहाँ से दृश्य बहुत अद्भुत था। सभी गाड़ियाँ, सभी लोग कितने छोटे दिखते थे। बस चलने पर आस-पास का दृश्य साफ़ दिखाई देने लगा। ऊँचे पेड़ अब हाथ-भर की दूरी पर थे। अब मैं सब वाहनों के अंदर देख सकता था। खुली हवा का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था।
आज अचानक चालक ने ब्रेक लगाई और अपने अनुभव में खोया, मेरा सिर आगे की सीट पर टकराया। मेरा सुखद अनुभव यहीं तक था। मुझे मेरी वैन ही अच्छी लगती है।
❤Sweetheart❤
Answer:
कोणार्क पहुँचने के लिए मुझे बस से बेहतर साधन कोई नजर नहीं आया. भुवनेश्वर से कोणार्क के लिए कई बसें चलती हैं. मैं अपने मित्रों के साथ एक बस में सवार होने के लिए बस अड्डे पहुंचा.
भुवनेश्वर बस अड्डे पर मुझे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा. बस अड्डा गंदगी से अटा पड़ा था. लोग यहाँ कोने किनारे खड़े होकर मूत्र त्याग करने से बाज नहीं आ रहे थे. सार्वजनिक स्थानों पर मूत्र त्यागना जैसे भारत की एक परम्परा बन चुकी हैं.
मेरी पहली बस यात्रा (Meri Pahli Bus Yatra)
मेट्रो स्टेशनों को छोड़कर भारत के सभी रेलवे स्टेशनों एवं बस अड्डों पर देश के नागरिकों की ऐसी हरकतें आपकों चेहरे पर रूमाल रखने के लिए अवश्य बाधित कर देगी.
किसी बस अड्डे या रेलवे स्टेशन पर यदि यह बदबू आपकों परेशान न करती हो तो समझ लीजिए कि आप किसी यूरोपीय देश में पहुँच चुके हैं.
मैं नाक पर रूमाल रखे, एक हाथ में अपना सामान लिए टिकट काउन्टर पर पहुंचा. काउन्टर पर काफी भीड़ थी. मैं भी पंक्ति में शामिल हो गया. लगभग एक घंटे तक पंक्ति में खड़ा रहने के बाद मैं टिकट लेने में कामयाब हो गया.
इस सफलता पर मैं कितना इतरा रहा था, मैं ही समझ सकता हूँ. एक घंटे तक खड़े होने के बाद यदि आपकों सफलता नसीब हो तो ऐसी ही ख़ुशी आपकों मिलेगी.
मेरे मित्रों ने बस से यात्रा को खतरनाक मानते हुए मुझे ऐसी मुर्खता करने से मना किया था, पर मुझे तो रोमांच