7 lines on metro in Sanskrit
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अहमस्मि मेट्रोरेलयानम्। ममेतिहास: नाति प्राचीन: परंच चित्ताकर्षक: विद्यते। यात्रा साधनानि बहुनि प्रचलितानि सन्ति। तेषु स्वल्पेनैव धनेन अल्पावधौ सुखेन जनानां यात्रासाधनत्वेन विश्वे विश्रुतोहम्।’ ‘तत: परं उत्तर प्रदेशस्य राजधान्यां (लखनऊ) अहं लक्ष्मणपुरया: जनानां कृते यात्राया: सुखसाधनखेन प्रस्तुत भवाम।’
संस्कृत में खुद के बारे में बताती मेट्रो की ये आत्मकथा स्कूली बच्चे अब दक्षिण भारत के छात्र पढ़ेंगे। इंग्लैंड लिवरपूल से लेकर लखनऊ तक मेट्रो का ये सफर सातवीं क्लास के छात्र पढ़ेंगे और मेट्रो के सफर को जानेंगे।
नगर के संस्कृत विद्वान डा. विजय कर्ण इन दिनों दक्षिण भारत के कई राज्यों में संस्कृत की प्रचलित संस्कृतरत्नम पाठ्यपुस्तक के लिये पाठ्यक्रम में पाठ ‘मेट्रोरेलयानस्य आत्मकथा’ पाठ लिख रहे हैं।
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