7. नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के
आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
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एक बार एक साँप पशुओं के जालीघर के भीतर आ गया। सब जीव-जंतु इधर-उधर भागकर छिप गए, परन्तु एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ ही गया। साँप ने उसे निगलना चाहा और उसका आधा पिछला शरीर मुँह में दबा लिया। नन्हा खरगोश धीरे-धीरे चीं-चीं कर रहा था। सोये हुए नीलकंठ ने जब यह क्रंदन सुना तो वह झट से अपने पंखों को समेटता हुआ झूले से नीचे आ गया। अब उसने बहुत सतर्क होकर साँप के फन के पास पंजों से दबाया और फिर अपनी चोंच से इतने प्रहार उस पर किए कि वह अधमरा हो गया और फन की पकड़ ढीली होते ही खरगोश का बच्चा मुख से निकल आया। इस प्रकार नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से बचाया।
इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की निम्न विशेषताएँ उभर कर आती हैं -
1. सजगता और सतर्कता - जालीघर के ऊँचे झूले पर सोते हुए भी उसे खरगोश की करुण पुकार सुनकर यह शक हो गया कोई प्राणी कष्ट में है और वह झट से झूले से नीचे उतरा।
2. साहसी - नीलकंठ साहसी प्राणी है। अकेले ही उसने साँप से खरगोश के बच्चों को बचाया और साँप के दो खंड करके अपनी वीरता का परिचय दिया।
3. दक्ष रक्षक - खरगोश को मौत के मुँह से बचाकर नीलकंठ ने यह सिद्ध कर दिया कि वह दक्ष रक्षक है। उसके रहते किसी प्राणी को कोई भय न था।
4. दयालु - दयालु प्रवृत्ति का होने के कारण ही वह खरगोश के बच्चे को सारी रात अपने पंखों में छिपाकर ऊष्मा देता रहा।
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