7. निष्ठुर अनुकंपा
इस तरह दो बार भोला बारपर मेहमान बाट क ये लोग गरी
हे हैं। प्रत्यावानीके मारे पर की हालत पराब है, खाने पीने की तक
कर । इनमें 1W नहीं है। किसी तरह उस रात का खाना खाकर या
करीब दस बजो रात को बहर कुहिन आई। बड़े
जाना जानती थी कि इस वक्त इनको गरजा है,
कर देता है। अतिथि को यह गिरता उनका जीवन हो चपल देती है।
कलियाँ लेकर कंदिन के पास आया तो उसने
a MobApp
व
साले पड़ने लगे। अब क्या किया जाए?
बड़े भाई ने मुंह पर हाथ रखकर कहा, "तुम
कुंजडिन ने इस मौके का लाभ उताकर उन
नीचे गिरा देता। कुछ रात बीते एक
ने दिए।
कुंजनि चली गई। चारपाइयों पर सब लोगों के
सन्नाटा छा जाता तो उन चारों भाइयों में से कोई एक उस पेड़ पर चढ़ जाता और फलियों को तोड़कर
जडिन' आती और सहिजन की फलियाँ खरीदकर ले जाती
जो थोड़े से पैसे मिल जाते उन्हीं से उस परिवार का निबाह होता।
दीवाली के बाद, एक दिन उनका एक रिश्तेदार उनके घर आया। उसे इन लोगों को बुरी दशा को
जानकारी न थी। जब भोजन तैयार हुआ तो बड़े भाई ने बहाना बनाया, "आज मेरा सोमवार का व्रत है
मैं खाना न खाऊँगा।"
दूसरे ने कहा, "मेरे पेट में दर्द उठ रहा है, डॉक्टर ने खाने को मना किया है।"
तीसरे भाई का कहना था कि उसे अपने दोस्त के घर दावत में जाना है, अत: वह शरीक न हुआ।
सबसे छोटा भाई घर में आए हुए मेहमान के साथ खाना खाने बैठा। दो थालियाँ लगाई गई। जब दोनों जन
खाने बैठे, तो बूढ़ी माँ मेहमान से खाने का खूब आग्रह करती रही लेकिन उसने अपने छोटे लड़के को
जरा भी न पूछा। वह लड़का भी सधा हुआ था। कोई चीज परोसी जाती, इससे पहले ही हाथ हिलाकर
कह देता, "मुझे नहीं चाहिए।"
शब्दार्थ: । कुल में पैदा हुआ मु-तरसना । सब्जी बेचनेवाली 4. गुजारा 5 शामिल • निवेदन
मु-समझ जाना भूखों मरना
शब्दार्थ
सो गया। सीवया गया. उसन सोने का हाग रचा।
से पेड़ पर चढ़कर सहिजन की काफी फलियों तोड़ा।
वह जो दाम देगी वही ले लेगे, ज्यादा पैसा उससे
किसी शहर में एक कलीन परिवार रहता था। उसमें चार भाईथे। परिवार का जायदाद ।
दाम कम दिए और कहा "आजकल सहिजन की
और धन-दौलत बरबाद हो चुकी थी। चारों भाई हुनरमंद और पढ़े-लिखे थे, फिर भी
मांग नहीं है, मुझे भी बाजार में लाभ नहीं मिलता।
अपनी खानदानी इरजत के कारण कहीं कोई नौकरी-चाकरी या काम धंधा नहीं कर पाते
अब मैं तुमको पहले की तरह ज्यादा कीमत नहीं
थे। घर की गरीबी दिनोंदिन बढ़ रही थी। घर की स्त्रियों के आभूषण भी वेलुके छिपे
दे सकती। तुम्हारी गरज' हो तो दाम लो, नहीं तो
उनके घर के पास बगीचे में सहिजन का एक पेड़ था। उसके फलने का मौसम था। लंबी लंबी
जितना देना चाहो दे दो, मगर जोर से मत बोलो।
और हरी-हरी सहिजन की फलियाँ डालियों पर लटक रही थी। जब शाम हो जाती और चारो तरफ कुछ
बरामदे में हमारे मेहमान सो रहे हैं, जाग जाएंगे।"
फलियों के दाम और भी घटा दिए। लाचार होकर
बड़े भाई को उतने ही पैसे लेने पड़े जितने कँडिन
अब भी जाग रहा था। वह दूरदशी तो था ही।उ
है। झूठी और बनावटी इज्जत के खयाल सेयेन
हैं और इस मामूली सहिजन के पेड़ के भरोसे
वह चुपचाप उठा। बरामदे के एक कोने में
के पेड़ के पास पहुँचा। पेड़ को जड़ के पास
ही नीम अंधेरे में मेहमान उस घर से चल दि
न मांगेगे। जब बड़ा भाई टोकरी में सहिजन की
कम दामों में बेच चुके थे। आखिर वह स्थिति भी आई जब घर में कुछ भी न बचा और खाने-पीने के
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Explanation:
7. निष्ठुर अनुकंपा
इस तरह दो बार भोला बारपर मेहमान बाट क ये लोग गरी
हे हैं। प्रत्यावानीके मारे पर की हालत पराब है, खाने पीने की तक
कर । इनमें 1W नहीं है। किसी तरह उस रात का खाना खाकर या
करीब दस बजो रात को बहर कुहिन आई। बड़े
जाना जानती थी कि इस वक्त इनको गरजा है,
कर देता है। अतिथि को यह गिरता उनका जीवन हो चपल देती है।
कलियाँ लेकर कंदिन के पास आया तो उसने
a MobApp
व
साले पड़ने लगे। अब क्या किया जाए?
बड़े भाई ने मुंह पर हाथ रखकर कहा, "तुम
कुंजडिन ने इस मौके का लाभ उताकर उन
नीचे गिरा देता। कुछ रात बीते एक
ने दिए।
कुंजनि चली गई। चारपाइयों पर सब लोगों के
सन्नाटा छा जाता तो उन चारों भाइयों में से कोई एक उस पेड़ पर चढ़ जाता और फलियों को तोड़कर
जडिन' आती और सहिजन की फलियाँ खरीदकर ले जाती
जो थोड़े से पैसे मिल जाते उन्हीं से उस परिवार का निबाह होता।
दीवाली के बाद, एक दिन उनका एक रिश्तेदार उनके घर आया। उसे इन लोगों को बुरी दशा को
जानकारी न थी। जब भोजन तैयार हुआ तो बड़े भाई ने बहाना बनाया, "आज मेरा सोमवार का व्रत है
मैं खाना न खाऊँगा।"
दूसरे ने कहा, "मेरे पेट में दर्द उठ रहा है, डॉक्टर ने खाने को मना किया है।"
तीसरे भाई का कहना था कि उसे अपने दोस्त के घर दावत में जाना है, अत: वह शरीक न हुआ।
सबसे छोटा भाई घर में आए हुए मेहमान के साथ खाना खाने बैठा। दो थालियाँ लगाई गई। जब दोनों जन
खाने बैठे, तो बूढ़ी माँ मेहमान से खाने का खूब आग्रह करती रही लेकिन उसने अपने छोटे लड़के को
जरा भी न पूछा। वह लड़का भी सधा हुआ था। कोई चीज परोसी जाती, इससे पहले ही हाथ हिलाकर
कह देता, "मुझे नहीं चाहिए।"
शब्दार्थ: । कुल में पैदा हुआ मु-तरसना । सब्जी बेचनेवाली 4. गुजारा 5 शामिल • निवेदन
मु-समझ जाना भूखों मरना
शब्दार्थ
सो गया। सीवया गया. उसन सोने का हाग रचा।
से पेड़ पर चढ़कर सहिजन की काफी फलियों तोड़ा।
वह जो दाम देगी वही ले लेगे, ज्यादा पैसा उससे
किसी शहर में एक कलीन परिवार रहता था। उसमें चार भाईथे। परिवार का जायदाद ।
दाम कम दिए और कहा "आजकल सहिजन की
और धन-दौलत बरबाद हो चुकी थी। चारों भाई हुनरमंद और पढ़े-लिखे थे, फिर भी
मांग नहीं है, मुझे भी बाजार में लाभ नहीं मिलता।
अपनी खानदानी इरजत के कारण कहीं कोई नौकरी-चाकरी या काम धंधा नहीं कर पाते
अब मैं तुमको पहले की तरह ज्यादा कीमत नहीं
थे। घर की गरीबी दिनोंदिन बढ़ रही थी। घर की स्त्रियों के आभूषण भी वेलुके छिपे
दे सकती। तुम्हारी गरज' हो तो दाम लो, नहीं तो
उनके घर के पास बगीचे में सहिजन का एक पेड़ था। उसके फलने का मौसम था। लंबी लंबी
जितना देना चाहो दे दो, मगर जोर से मत बोलो।
और हरी-हरी सहिजन की फलियाँ डालियों पर लटक रही थी। जब शाम हो जाती और चारो तरफ कुछ
बरामदे में हमारे मेहमान सो रहे हैं, जाग जाएंगे।"
फलियों के दाम और भी घटा दिए। लाचार होकर
बड़े भाई को उतने ही पैसे लेने पड़े जितने कँडिन
अब भी जाग रहा था। वह दूरदशी तो था ही।उ
है। झूठी और बनावटी इज्जत के खयाल सेयेन
हैं और इस मामूली सहिजन के पेड़ के भरोसे
वह चुपचाप उठा। बरामदे के एक कोने में
के पेड़ के पास पहुँचा। पेड़ को जड़ के पास
ही नीम अंधेरे में मेहमान उस घर से चल दि
न मांगेगे। जब बड़ा भाई टोकरी में सहिजन की
कम दामों में बेच चुके थे। आखिर वह स्थिति भी आई जब घर में कुछ भी न बचा और खाने-पीने के