7- रहस्यवाद तथा छायावाद में अन्तर बताइये।
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यद्यपि छायावाद और रहस्यवाद में विषय की दृष्टि से अंतर है—जहाँ रहस्यवाद का विषय आलंबन अमूर्त, निराकार ब्रह्म है जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है।आधुनिक काल में भी छायावाद में रहस्यवाद दिखाई पड़ता है। ... यद्यपि छायावाद और रहस्यवाद में विषय की दृष्टि से अंतर है—जहाँ रहस्यवाद का विषय आलंबन अमूर्त, निराकार ब्रह्म है जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है।
छायावाद हिंदी कविता की एक विशेष प्रवृति है जिसमें रहस्यवाद की भावना का कही-कही समावेश है।रहस्यवाद परमतत्त्व के सीधे साक्षात्कार का यत्न है,छायावाद में उसकी छाया के विविध चित्र हैं।एक का मुख्य क्षेत्र साधना है जबकि दूसरें की कविता।भाषा-शैली में समानता होते हुए भी वे पृथक काव्यधाराएं हैं- एक का विषय लौकिक प्रेम होता है तो दूसरें का आध्यात्मिक।एक में प्रणय का आलम्बन रूपवती युवती होती है,तो दूसरें में अव्यक्त,निर्गुण, निराकार प्रियतम के प्रति आत्म निवेदन होता है।एक का क्षेत्र मनोजगत् होता है तो दूसरें का आत्मा।एक में मनोजगत् के सूक्ष्म सत्य को,मन की विविध अवस्थाओं को चित्रित किया जाता है,दूसरें में आत्मा की प्रणयानुकूल स्थिति,मिलने की व्यग्रता,विछोह की पीड़ा और अंत में पीड़ा को ही सुख मानने की स्थिति का संकेत मिलता है:
पंथ रहने दो अपरिचित,प्राण रहने दो अकेला
× × ×
और होगे चरण हारे
और हैं जो लौटते,दे शूल को संकल्प सारे।
यह सत्य है कि आधुनिक काल के हिंदी रहस्यवादी कवियों का आलम्बन ब्रह्म होता है,वह अनंत और अज्ञात प्रियतम से ही प्रणय- संबंध स्थापित करता है,पर उसके पीछे धार्मिक-साम्प्रदायिक प्रेरणा नहीं होती।इस प्रेरणा का स्रोत मानवीय और सांस्कृतिक होता है
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यद्यपि छायावाद और रहस्यवाद में विषय की दृष्टि से अंतर है—जहाँ रहस्यवाद का विषय आलंबन अमूर्त, निराकार ब्रह्म है जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है।आधुनिक काल में भी छायावाद में रहस्यवाद दिखाई पड़ता है। ... यद्यपि छायावाद और रहस्यवाद में विषय की दृष्टि से अंतर है—जहाँ रहस्यवाद का विषय आलंबन अमूर्त, निराकार ब्रह्म है जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है।
छायावाद हिंदी कविता की एक विशेष प्रवृति है जिसमें रहस्यवाद की भावना का कही-कही समावेश है।रहस्यवाद परमतत्त्व के सीधे साक्षात्कार का यत्न है,छायावाद में उसकी छाया के विविध चित्र हैं।एक का मुख्य क्षेत्र साधना है जबकि दूसरें की कविता।भाषा-शैली में समानता होते हुए भी वे पृथक काव्यधाराएं हैं- एक का विषय लौकिक प्रेम होता है तो दूसरें का आध्यात्मिक।एक में प्रणय का आलम्बन रूपवती युवती होती है,तो दूसरें में अव्यक्त,निर्गुण, निराकार प्रियतम के प्रति आत्म निवेदन होता है।एक का क्षेत्र मनोजगत् होता है तो दूसरें का आत्मा।एक में मनोजगत् के सूक्ष्म सत्य को,मन की विविध अवस्थाओं को चित्रित किया जाता है,दूसरें में आत्मा की प्रणयानुकूल स्थिति,मिलने की व्यग्रता,विछोह की पीड़ा और अंत में पीड़ा को ही सुख मानने की स्थिति का संकेत मिलता है:
पंथ रहने दो अपरिचित,प्राण रहने दो अकेला
× × ×
और होगे चरण हारे
और हैं जो लौटते,दे शूल को संकल्प सारे।
यह सत्य है कि आधुनिक काल के हिंदी रहस्यवादी कवियों का आलम्बन ब्रह्म होता है,वह अनंत और अज्ञात प्रियतम से ही प्रणय- संबंध स्थापित करता है,पर उसके पीछे धार्मिक-साम्प्रदायिक प्रेरणा नहीं होती।इस प्रेरणा का स्रोत मानवीय और सांस्कृतिक होता है
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