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सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म कैसे हुआ
संक्षेप में बताइए ।
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Explanation:
कर्ण का जन्म कुन्ती को मिले एक वरदान स्वरुप हुआ था। जब वह कुँआरी थी, तब एक बार दुर्वासा ऋषि उनके पिता के महल में पधारे। तब कुन्ती ने पूरे एक वर्ष तक ऋषि की बहुत अच्छे से सेवा की।
महाभारत के कर्ण केवल शूरवीर या दानी ही नहीं थे अपितु कृतज्ञता, मित्रता, सौहार्द, त्याग और तपस्या का प्रतिमान भी थे। वे ज्ञानी, दूरदर्शी, पुरुषार्थी और नीतिज्ञ भी थे और धर्मतत्व समझते थे। वे दृढ़ निश्चयी और अपराजेय भी थे। सचमुच कर्ण का व्यक्तित्व रहस्यमय है। उनके व्यक्तित्व के हजारों रंग हैं, लेकिन एक जगह उन्होंने झूठ का सहारा लिया और अपने व्यक्तित्व में काले रंग को भी स्थान दे दिया। कर्ण कुंती के सबसे बड़े पुत्र थे और कुंती के अन्य 5 पुत्र उनके भाई थे।
कौन्तेयस्त्वं न राधेयो न तवाधिरथः पिता।
सूर्यजस्त्वं महाबाहो विदितो नारदान्मया।।- (भीष्म पर्व 30वां अध्याय)
कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। महाराज कुंतिभोज से कुंती के पिता शूरसेन की मित्रता थी। कुंतिभोज को कोई संतान नहीं थी अत: उन्होंने शूरसेन से कुंती को गोद मांग लिया। कुंतिभोज के यहां रहने के कारण ही कुंती का नाम 'कुंती' पड़ा। हालांकि पहले इनका नाम पृथा था। कुंती (पृथा) का विवाह राजा पांडु से हुआ था।