8. अतिथि यज्ञ और बलि वैश्वदेव यज्ञ की विधियों का उल्लेख कीजिए।
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अतिथि यज्ञ और बलि वैश्वदेव यज्ञ की विधियों का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है।
अतिथि यज्ञ
- अतिथि यज्ञ चौथा महायज्ञ कहा जाता है। यह यज्ञ नित्य कर्म यज्ञ है।
- अतिथि यज्ञ के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिन बुलाए, बिना सूचना दिए आपके घर आ जाए तो उसका स्वागत सत्कार कीजिए। उसे पीने के लिए पानी दीजिए। अतिथि यज्ञ हमारे देश की संस्कृति है।देश के कई भागों में आज भी अतिथि के लिए लोगों में सम्मान की भावना है।
- राजा रंतिदेव इस यज्ञ के आदर्श कहे जाते है।राजा जब अतिथि यज्ञ की परीक्षा में सफल हुए तब भी उन्होंने कहा कि मुझे स्वर्ग नहीं चाहिए, राज्य नहीं चाहिए। यदि देना चाहते हो एक वर दो की मै दिन दुखियों की सेवा कर सकूं।
बलि वैश्व देव यज्ञ
- यह यज्ञ अतिथि यज्ञ के बाद पांचवा नित्य कर्म या " भूत यज्ञ " है। इसका अर्थ है समस्त सृष्टि के प्राणियों के कल्याण के लिए प्रयत्न करना व दान देना। सबके लिए प्रार्थना करना, भोजन करने से पहले यज्ञ की अग्नि में या रसोई के चूल्हे में नमकीन वस्तुओं को छोड़कर मीठा मिले हुए अन्न की आहुति देना।
- चींटियों को आटा देना, चिड़ियों को पानी देना इत्यादि।
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