8. पाहन पूजे हरि मिले.तो मैं पूनँ पहार।
ताते ये चाकी भली. पीस खाय संसार।।
क. शब्दार्थ
पाहन, ताते।
ख. इन पंक्तियों में कबीरदास जी ने क्या कहने का प्रयास किया है?
ग. कवि ने चाकी को भला क्यों बताया है?
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(क) पाहन –पत्थर,
ताते – तपाया हुआ।
(ख) अगर पत्थर(मूर्ति) पूजने से भगवान मिल जाएँ तो मैं पूरा पर्वत ही पूजना चाहूँगा। इस(पत्थर की मूर्ति) से तो अच्छी व पत्थर की चक्की है जिसके द्वारा अन्न पीसकर, पूरा संसार अपना पेट भर पाता है।
(ग) चक्की तप का प्रतिक है। जो स्वयं घिसकर संसार का भरण पोषण करता है।
नोट:–ईश्वर आस्था का प्रतीक है। यदि आपके अंदर अटूट श्रद्धा है, तो हमें पत्थर के अंदर भी परमात्मा के दर्शन हो जाता है। अत: ईश्वर के विग्रह रूप को भी पूजकर वयक्ति ईश्वर की अनुभूति कर लेते हैं। मेरा उद्देश्य ना तो ईश्वर का अपमान करना है, और ना ही मूर्ति पूजा को असत्य ठहराना है।
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