8 पिता को सुखिया की अंतिम इच्छा पूरी करने मे क्या -क्या कठिनाइयाँ आई ?
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सुखिया के पिता को अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सुखिया को देवी माँ के मंदिर में खिलने वाले एक फूल की चाह थी। जब सुखिया महामारी की चपेट में आकर बीमार पड़ गई और मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई, तब सुखिया अपने पिता से बोलती है, मुझे कोई डर नहीं, मुझे कुछ नही होने वाला। आप बस मुझे देवी माँ के प्रसाद का एक फूल लाकर दे दो।
सुखिया का पिता अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में जाता है, लेकिन और मंदिर मैं देवी मां को प्रसाद चढ़ता है और एक फूल उनके चरणों में अर्पण करके फूल अपनी बेटी को देने के लिए रख लेता है, लेकिन जात-पात और धर्म अंधे लोग उसे अछूत कहकर मंदिर में घुसने पर उसको मारते हैं और उसको पकड़कर ले जा कर अदालत में पेश कर देते हैं उसे 7 दिन की कैद की सजा सुनाता है। किसी तरह सात दिन की सजा काटकर वह वापस अपने घर आता है, तब तक उसकी बेटी का देहांत हो चुका है, उसके दुख की कोई सीमा नही रहती है। उसे एक बात का ही अफसोस रह जाता है, कि वो अपनी बेटी सुखिया का अंतिम इच्छा पूरी नही कर सका।
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Answer:
सुखिया के पिता को अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सुखिया को देवी माँ के मंदिर में खिलने वाले एक फूल की चाह थी। जब सुखिया महामारी की चपेट में आकर बीमार पड़ गई और मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई, तब सुखिया अपने पिता से बोलती है, मुझे कोई डर नहीं, मुझे कुछ नही होने वाला। आप बस मुझे देवी माँ के प्रसाद का एक फूल लाकर दे दो।
सुखिया का पिता अपनी बेटी की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में जाता है, लेकिन और मंदिर मैं देवी मां को प्रसाद चढ़ता है और एक फूल उनके चरणों में अर्पण करके फूल अपनी बेटी को देने के लिए रख लेता है, लेकिन जात-पात और धर्म अंधे लोग उसे अछूत कहकर मंदिर में घुसने पर उसको मारते हैं और उसको पकड़कर ले जा कर अदालत में पेश कर देते हैं उसे 7 दिन की कैद की सजा सुनाता है। किसी तरह सात दिन की सजा काटकर वह वापस अपने घर आता है, तब तक उसकी बेटी का देहांत हो चुका है, उसके दुख की कोई सीमा नही रहती है। उसेएक बात का ही अफसोस रह जाता है, कि वो अपनी बेटी सुखिया का अंतिम इच्छा पूरी नही कर सका।
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