8. सीस मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माल।
यहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल।। (ish dohe ka bhav spasht Karen)
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मोर मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माल।
यहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल।।
यह कवि बिहारी द्वारा रचित यह दोहा है। इसका भावार्थ तथा भाव इस प्रकार है।
भावार्थ — कवि बिहारी कहते हैं कि जिनके सर पर मोर वाला मुकुट है, जो पीली धोती धारण किए हैं और जो अपने होठों पर बांसुरी लिए हुए उसकी मधुर तान से सबके मन को मोहित कर देते हैं, और सदैव मीठी वाणी बोलने वाले हैं, ऐसे परम प्रिय भगवान श्रीकृष्ण सदैव मेरे मन में बसा करते हैं।
भाव — यहाँ कवि बिहारी ने भगवान श्रीकृष्ण की मनोहारी छवि का वर्णन का करते हुए उनके प्रति अपनी अपना अनन्य प्रेम, अगाध श्रद्धा और परम भक्ति प्रकट की है।
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Explanation:
मोर मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल।
यहि बानिक मो मन बसौ सदा बिहारीलाल।।
सिर पर मौर मुकुट, पीली धोती और बांसुरी लिए मीठी वाणी बोलने वाला मेरा बिहारी सदा मेरे मन मैं बसा हैं
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