8. सियूकी' ग्रंथ कोणी लिहीला?
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sorry i dont no.mark to bra
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‘सियूकी’ प्राचीन भारतीस इतिहास के अनेक अध्यायों का और वर्धन वंश का तो विशेष रूप से इतिहास बताने वाली अपना पृथक महत्व रखने वाली महत्वपूर्ण रचना है। ह्वेनसांग बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का विद्वान था। हर्षवर्धन ने अपनी कन्नौज धर्म-सभा का अध्यक्ष इस महान् चीनी यात्री को ही बनाया था।
Explanation:
Step 1: चीनी यात्रियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ह्वेनसांग को ‘प्रिंस आफ पिलग्रिम्स’ अर्थात् ‘यात्रियों का राजकुमार’, और ‘नीति का पण्डित’ कहा जाता है। उसकी उपाधि मोक्षदेव तथा महायानदेव थी। बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग भारत में बौद्ध धर्म का ज्ञानार्जन करने के लिए पुष्यभूति वंश के सम्राट कन्नौज नरेश हर्षवर्धन (606-47 ई.) के शासनकाल में भारत आया था। ह्वेनसांग के पवित्र भूमि भारत पर पधारने का वर्ष 629ई0 माना जाता है।
Step 2: इसने लगभग 16वर्षों तक भारत में व्यतीत किया और छः वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। भारतीय धर्मों, संस्कृति और मानव जीवन,व्यापार का ह्वेनसांग ने अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। भारतीय सामाजिक वातावरण में उभरते अनैतिक स्वर का भी ह्वेनसांग ने स्वाद चखा था, उसकी एकाध बार चोर डाकुओं से मुठभेंड़ इुई थी। इसकी भारत-यात्रा के वृतांत को ‘सी-यू-की’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें लगभग 138 देशों की यात्राओं का वर्णन है। ‘
Step 3: ‘सियूकी’ प्राचीन भारतीस इतिहास के अनेक अध्यायों का और वर्धन वंश का तो विशेष रूप से इतिहास बताने वाली अपना पृथक महत्व रखने वाली महत्वपूर्ण रचना है। ह्वेनसांग बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का विद्वान था। हर्षवर्धन ने अपनी कन्नौज धर्म-सभा का अध्यक्ष इस महान् चीनी यात्री को ही बनाया था। उसके मित्र ह्नीली ने ‘ह्वेनसांग की जीवनी’ नामक ग्रंथ लिखा है जिससे हर्षकालीन भारत पर प्रकाश पड़ता है। ह्वेनसांग दक्षिण में कांची तक की यात्रा किया था उसने पल्लव नरेश नरसिंहवर्मन (महामल्ल) का उल्लेख किया है।
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