Hindi, asked by kritika1379, 1 year ago

8th class essay in casteism and national integration in Hindi
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Answered by mishranikhilkupb66p9
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वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण अंग रही है। जिसने सामाजिक और राजनीतिक जीवन के सभी पक्षो को प्रभावित किया है। वर्तमान युग में भी व्यक्ति की जाति जन्म से ही निर्धारित होती है न कि कर्म से। इस प्रकार प्राचीन वर्ण व्यवस्था की विकृति के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुर्इ जाति व्यवस्था ने ही जातिवाद को जन्म दिया है।

जातिवाद का आशय- 

जातिवाद या जातीयता एक ही जाति के लोगो की वह भावना है। जो अपनी जाति विशेष के हितो की रक्षा के लिये अन्य जातियो के हितो की अवहेलना आरै उनका हनन करने के लिये प्रेरित करती है। इस प्रभावना के आधार पर एक ही जाति के लोग अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये अन्य जाति के लोगो को हानि पहुंचाने के लिये प्रेरित होते है।

जातिवाद का लोकतंत्र पर प्रभाव- 

जातिवाद के कुछ ऐसे दुष्परिणाम भी सामने आये है। जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र को प्रतिकूल रूप में प्रभावित कर रहे है।

राष्ट्रीय एकता के घातक - जातिवाद राष्ट्रीय एकता के लिये घातक सिद्ध हुआ है। क्योंकि जातिवाद की भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति अपने जातीय हितो को ही सर्वोपरि मानकर राष्ट्रीय हितो की उपेक्षा कर देता है। व्यक्ति केा तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिससे राष्ट्रीय एकता को आघात पहचुं ता है।  

जातीय एवं वगरीय संघर्ष- जातिवाद ने जातीय एवं संघर्षो को जन्म दिया है। विभिन्न जातियो एवं वर्गो में पारस्परिक र्इष्र्या एवं द्वेष के कारण जातीय एवं वर्गीय दंगे हो जाया करते है। इतना ही राजसत्ता पर अधिकार जमाने के लिये विभिन्न जातियों के मध्य खुला संघर्ष दिखार्इ देता है। 

राजनीतिक भ्रष्टाचार- सभी राजनैतिक दलो में जातीय आधार पर अनेक गुट पाये जाते है और वे निर्वाचन के अवसर पर विभिन्न जातियो के मतदाताओ की संख्या को आधार मानकर ही अपने प्रत्याशियो का चयन करते है। निर्वाचन के पश्चात राजनीतिज्ञ नेतृत्व का निर्णय भी जातिगत आधार पर ही होता है। 

नैतिक पतन- जातिवाद की भवना से पे्ररित व्यक्ति अपनी जाति के व्यक्ति यो को अनुचित सुविधाएं प्रदान करने के लिये अनैतिक एवं अनुचित कार्य करता है। जिससे समाज का नैतिक पतन हो जाता है। 

समाज की गतिशाीलतता और विकास में बाधक- जातीय बंधन जातीय प्रेम के कारण एक व्यक्ति एक स्थान को छाडे कर रोजगार या अपने विकास हेतु किसी दूसरे स्थान पर नही जाता भले ही उसकी निर्धनता में वृद्धि क्यों न होती रहे। 

इस प्रकार बेरोजगारी, निर्धनता, कुप्रथाओ के कारण समाज के विकास में जातिवाद बाधक सिद्ध हो रहा है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जातिवाद भारतीय लोकतंत्र के लिए संदिग्ध हो गयी है।


जातिवाद को दूर करने के उपाय- 

भारत में जातिवाद को जन्म देने वाली कुप्रथा जातिप्रथा है। जिसे एकदम तो समाप्त नही किया जा सकता परंतु इस दिशा में उपाय किये जाने चाहिए-

अन्तजार्तीय विवाहो को पेा्रत्साहन दिया जाना चाहिए इससे जातीय बंधन ढ़ीले पडेंगे। 

जाति सूचक उपनामो पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। 

जातिगत आधार पर होने वाले चुनावो पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। 

जाति प्रथा के विरूद्ध प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए। 

समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक असमानता को समाप्त करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।


kritika1379: Thanks
mishranikhilkupb66p9: Your welcome
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kritika1379: Ap ko nahi pata apne mere kitni badi madat ki
mishranikhilkupb66p9: Ooooo.... mention not
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