9. कोन-कोन ठउर ल छत्तीसगढ़ के कला-संस्कृति के अगासदिया केहे गे हे ?
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Answer: भारत के हृदय स्थल पर स्थित छत्तीसगढ़ जो भगवान श्रीराम की कर्मभूमि रही है, प्राचीन कला, सभ्यता, संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है। यहां ऐसे भी प्रमाण मिले हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि श्रीराम की माता कौशल्या छत्तीसगढ़ की ही थी।
कह सकते हैं कि यहां धर्म कला व इतिहास की त्रिवेणी अविरल रूप से प्रवाहित होती रही है। हिंदुओं के आराध्य भगवान श्रीराम राजिम व सिहावा में ऋषि-मुनियों के सानिध्य में लंबे समय तक रहे और यहीं उन्होंने रावण वध की योजना बनाई थी। उनकी कृपा से ही आज त्रिवेणी संगम पर राजिम कुंभ को देश के पांचवें कुंभ के रूप में मान्यता मिली है।
सिरपुर की ऐतिहासिकता बौद्ध आश्रम, रामगिरी पर्वत, चित्रकूट, भोरमदेव मंदिर, सीताबेंगरा गुफा स्थित जैसी अद्वितीय कलात्मक विरासतें छत्तीसगढ़ को आज अंतरराष्ट्रीय पहचान प्रदान कर रही है। संस्कृति एवं पुरातत्व धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग का मुख्य दायित्व संभालने के बाद संस्कृति मंत्री ने विगत आठ वर्षों के दौरान यहां की कला व संस्कृति की उत्कृष्टता को देश व दुनिया के सामने रख कर छत्तीसगढ़ के मस्तक को गर्व से ऊंचा उठा दिया है।
विरासत पा लेना तो फिर भी आसान होता है, लेकिन उसे सहेज कर रख पाना चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। संस्कृति व धर्मस्व मंत्री के मार्गदर्शन में संस्कृति व पुरातत्व विभाग के अमले ने तो छत्तीसगढ़ की अद्वितीय पुरातात्विक विरासत को सहजने के साथ ही संवारने का भी काम किया है। जिसकी बदौलत छत्तीसगढ़ में पर्यटन की संभावना असीम हुई है।
छत्तीसगढ़ के गौरवशाली अतीत के परिचालक कुलेश्वर मंदिर राजिम, शिव मंदिर चन्दखुरी, सिद्धेश्वर मंदिर पलारी, आनंद प्रभु कुरी विहार और स्वहितक बिहार सिरपुर, जगन्नाथ मंदिर खल्लारी, भोरमदेव मंदिर कवर्धा,बत्तीस मंदिर बारसूर और महामाया मंदिर रतनपुर सहित पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण 58 स्मारक घोषित किए गए हैं।