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प्र०1.निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें।
भारतीय संस्कृति का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि यहाँ पर्यावरण संरक्षण का भाव अति पुरातन
काल में भी मौजूद था पर उसका स्वरूप भिन्न था। उस काल में कोई राष्ट्रीय वन नीति या पर्यावरण
पर काम करने वाली सस्थाएँ नहीं थी। पर्यावरण का संरक्षणहमारे नियमित क्रिया कलापों से ही जुड़ा
हुआ था। इसी वजह से वेदो से लेकर कालिदास,दंडी,पंत,प्रसाद आदि कवियों तक सभी के काव्य
में इसका व्यापक वर्णन मिलता है। भारतीय दर्शन यह मानता है कि इस देह की रचना पर्यावरण के
महत्वपूर्ण घटकों,पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही हुई है। समुद्र मंथन से वृक्ष जाति के
प्रतिनिधि के रूप में कल्पवृक्ष का निकलना देवताओं द्वारा उसे अपने संरक्षण में लेना पर्यावरण
संरक्षण का उदाहरण है। कृष्ण की गोवर्धन पूजा की शुरुआत का अलौकिक पक्ष यह है कि जन
सामान्य मिट्टी, पर्वत, वृक्ष एवं वनस्पति का आदर सीखें।
जिस प्रकार राष्ट्रीय वन- निति के अनुसार संतुलन बनाए रखने हेतु 33% भूभाग वनाच्छादित होना
चाहिए. ठीक इसी प्रकार प्राचीन काल में जीवन का एक तिहाई भाग प्राकृतिक संरक्षण के लिए
समर्पित था, जिससे कि मानव प्रकृति को भली भाँति समझकर उसका समुचित उपयोग कर सके और
प्रकृति का संतुलन बना रहे। सिंधु सभ्यता कि मोहरों पर पशुओं एवं वृक्षों का अंकन, सम्राटो द्वारा
अपने राज चिह्नों के रूप में वृक्षों एवं पशुओं का पशुओं को स्थान देना गुप्त सम्राटों द्वारा बाज को
पूज्य मानना,मार्गों में वृक्ष लगवाना दूसरे प्रदेशों से वृक्ष मंगवाना आदि तात्कालिक प्रयास पर्यावरण प्रेम
कोही प्रदर्शित करते हैं।
क. भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण का स्वरूप कैसा था और वह किससे जुड़ा था ?
ख. भारतीय दर्शन के अनुसार मानव देह कि रचना किन किन तत्वों से हुई है ?
ग. कृष्ण की गोवर्धन पूजा का लौकिक पक्ष क्या है?
घ. प्राचीनकाल में जीवन का एक-तिहाई भाग किस के लिए और क्यों समर्पित था ?
ड. सिंधु सभ्यता का पर्यावरण-प्रेम किन बातों से प्रदर्शित होता है।
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च. समुद्र मंथन से क्या निकला?
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jf fnfh jgmiy
Explanation:
grinhrvtghntjbc jtnrjj jf kfnrjbtjn
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