Hindi, asked by rajbalasingh15121968, 6 hours ago

9 श्रीराम की बाल-लीला
'यक्तिकाल' को मिली साहित्य स्वर्ण युग' के नाम से जाना जाता है। आत कवियों ने अपने-अपने
आराध्य की आराधना करते हुए जन मानस के मा अलौकिक शक्ति भक्ति और मानवता के
प्रति अदवितीय विश्वास जागत किया। तुलसीदास जी गा. अमित शाखा के शिरोमणि कवि था
उन्होंने 'कवितावली' श्रीराम के बाल रूप का वर्णन ब्रजभाषा किया है।
आस्था या पक्षी है, जो सुबह के अंधेरे में भी उजाले को महसूप का ता है।
बाल-लीला
कबहूँ ससि माँगत आदि का कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरें।
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सवै मन मौद पौ।।
कबहूँ रिसिआइ कहैं, हठिकै पुनि लेत साई जहि लागिी।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन मंदिर में विह।।४।।
बर दंत की पंगति कुंदकरली अधराधर-पल्लव खोलन की।
चपला चमकै घन बीच जगछबि मोतिन माल अमोलन की।
धुंधरारि लह लटक मुख ऊपर कुंडल लाल कपोलन की।
नेवछावरि प्रान करें तुलसी बलि जाउँ लला इन बोलन की1211
पग नपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमान दि)
नवनीत कलेवर पीत अँगा झलकै पुलक तृपु गोद लिएँ।
अरबिंदु सो आननु रुप मरंदु अनंदित लोचन-श्रृंग पिएँ।
मन मान बस्यौ अस बालकुजी तुलसी जग में फलु कौन जिएँ
।।
तनकी दुति स्याम सरोरुह लोचन कंजकी मंजुलताई हौ।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धौं।
दमकैं द॑तियाँ दुति दामिनि ज्याँ किलक कल बाल-बिनोद करें।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन-मंदिर में बिहरै।।
-तुलसीदास​

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Answered by karunendersingh292
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Answer:

jai shree ram

jai seeta ram

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