A 2 minute speech on 1.व्यावहारिक हिन्दी का महत्व
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व्यावहारिक हिंदी:-
भाषा का ज्ञान पूरा तभी माना जाता है जब उसे भाषा के व्याकरण पर विशेष पकड़ हो. सही में कोई भी लेख, कविता, निबंध या कोई भी अन्य रचना मनोरम तभी हो पाती है जब उसमें व्याकरण की त्रुटियाँ न हों. इन सबके बावजूद भी कई बार संदर्भानुसार वातावरण की बोली का भी प्रयोग करना जरूरी हो जाता है, जो कहानी, कविता या लेख को उसका उपयुक्त वातावरण प्रदान करती है. जिससे कहानी प्रवाहमयी हो जाती है. वैसे कविता में व्याकरण का बंधन तो कम है किंतु उसमें अलंकारों का महत्व बढ़ जाता है.
सबके बावजूद भी हिंदी में कई ऐसे व्यावहारिक पद समा गए हैं जो अक्सर सुनने में आते हैं. कभी कभी लेखन में भी दीख पड़ते हैं. पर वे व्याकरण व सटीकता की दृष्टि में खरे नहीं उतरते.
उदाहरण के तौर पर बहुत ही प्रचलित वाकया लीजिए... रेलगाड़ी में सफर करते वक्त कोई सहयात्री पूछ ही लेता है भाई साहब फलाँ स्टेशन कब आएगा ? पूछने वाला शख्स व जवाब देने वाला दोनों जानते हैं कि सवाल व्याकरण की दृष्टि से व्यवहारिक सही नहीं है. लेकिन जवाब दिया जाता है कि भाई जी फलाँ बजे के लगभग आएगा. रेल चल रही है, स्टेशन अपनी जगह पर है किंतु सवाल ऐसे ही पूछा जाता है और जवाब भी ऐसे ही दिया जाता है. भले ही गलत हो किंतु अब यही रवैया नियम बन गया है. ऐसे ही पूछना है और ऐसे ही जवाब देना है.