a 600 story on the Hindi proverb सहज पके सो मीठा होए
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यह बहुत अच्छी कहावत इस कहावत से हमें सिख लेनी चाहिए |
यह हमें सिखाती है धीरे-धीरे किए जाने वाला कार्य स्थायी फलदायक होता है|
सब्र संयम और धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए , ज़्यादा उतावलापन भी ठीक नहीं होता |
इस कहावत पर बहुत सारी कहानियां बनी है |
खरगोश और कछुआ वाली कहानी उस में से एक है |
जंगल में दो दोस्त रहते थे, खरगोश और कछुआ। दोनों एक साथ घूमते फिरते। कहीं भी जाना होता तो खरगोश तो उछल – कूद कर झट से पहुँच जाता और कछुआ धीरे – धीरे चलते-चलते काफी देर से पहुँचता था | यह सब देख कर खरगोश और दूसरे जानवर कछुए का खूब मज़ाक उड़ाते। यह सब कछुए को बहुत बुरा लगता। कछुए ने रेस प्रतियोगिता के लिए खरगोश को चैलेंज दिया। खरगोश ने यह सोच कर की मैं ही जीत जाऊंगा , चैलेंज को हाँ कर दिया |
जंगल में एक तालाब था। उसी तालाब पर पहुँचने की शर्त लगी की जो पहले वहाँ पहुँचेगा उसे इनाम मिलेगा। रेस शुरु हुई। खरगोश तो उछलते कूदते आधे रास्ते तक पहुँच गया। उसने देखा कि कछुआ तो कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा। खरगोश ने सोचा ” चलो थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ। फिर भाग कर कछुए से पहले तालाब तक पहुँच जाऊँगा। इस तरह खरगोश एक पेड़ की छाया में लेट गया और उसे नींद आ गई।
थोड़ी देर बाद जब कछुआ पेड़ तक पहुँचा तो उसने खरगोश को सोते हुए देखा। लेकिन वह रुका नहीं। इस तरह धीरे – धीरे कछुआ तालाब तक पहुँच गया।
शाम हो गयी जब खरगोश की नींद खुली तो उसको लगा कि कछुआ तो अभी रास्ते में ही होगा। खरगोश कूदते – कूदते तालाब तक पहुँचा, तो उसने क्या देखा – अरे ! यह कैसे हुआ।
कछुआ तो पहले से वहाँ बैठा था। इस तरह कछुआ रेस जीत गया। उसे इनाम भी मिला और फिर कभी किसी ने उसकी धीमी चाल को लेकर मज़ाक नहीं बनाया।
इसीलिए कहते हैं –
“सहज पके सो मीठा होए ” धैर्य से कोई भी काम पूरा कर सकते हैं।