Hindi, asked by nirjalamshr8295, 1 year ago

a brief summary of premchand ke phate joote in hindi

Answers

Answered by Rahulyeldi
13
पाठ का सार

प्रस्तुत लेख में परसाई जी ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दॄष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है। लेखक प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर आश्चर्यचकित होकर कहता है कि फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी? जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है। फिर भी चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। यह मुस्कान नहीं , इसमें उपहास है, व्यंग्य है। वह आगे कहता है कि इससे अच्छा होता कि तुम फोटो ही नहीं खिंचाते। तुम फोटो का महत्व नहीं समझते । लोग तो ऐसे कमों के लिए जूते क्या कपड़े और बीवी तक माँग लेते हैं।एक टोपी तक नहीं पहनी। टोपी तो आठ आने में मिल जाती है।


तुम महान कथाकार,उपन्यास-सम्राट,युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। फिर लेखक अपनी बात करता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है, मगर अंगुली बाहर नहीं निकलती पर अंगूठे के नीचे तला फट गया है जिससे अंगूठा रगड़ खाकर छील जाता है, लेकिन जूता फटा होने के बावज़ूद तुम्हारा पाँव सुरक्षित है। तुम पर्दे का महत्व नहीं समझते और हम पर्दे पर क़ुर्बान हो रहे हैं। फिर भी तुम मुस्करा रहे हो। यह ऱाज़ समझ में नहीं आया। लगता है तुम किसी सख्त चीज़ से ठोकर मारकर अपना जूता पहाड़ लिया। तुम उसे बचाकर उसके बगल से भी निकल सकते थे। पर तुम समझौता नहीं कर सके। मै समझता हूँ, तुम्हारी अंगुली का इशारा भी समझता हूँ और यह व्यंग्य मुस्कान भी समझता हूँ।

Answered by MissAngry
5

उत्तर :-

परसाई जी के सामने प्रेमचंद तथा उनकी पत्नी का एक चित्र है। इसमें प्रेमचंद धोती-कुर्ता पहने हैं तथा उनके सिर पर टोपी है। वे बहुत दुबले हैं, चेहरा बैठा हुआ तथा हड्डियाँ उभरी हुई हैं। चित्र को देखने से ही पता चल रहा है कि वे निर्धनता में जी रहे हैं। वे कैनवस के जूते पहने हैं जो बिल्कुल फट चुके हैं, जिसके कारण ढंग से बँध नहीं पा रहे हैं और बाएँ पैर की उँगलियाँ दिख रही हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर लेखक को चिंता हो रही हैं कि यदि उनकी (प्रेमचंद) फ़ोटो खिंचाते समय ऐसी हालत है तो वास्तविक जीवन में उनकी क्या हालत रही होगी। फिर उन्होंने सोचा कि प्रेमचंद कहीं दो तरह का जीवन जीने वाले व्यक्ति तो नहीं थे। किंतु उन्हें दिखावा पसंद नहीं था, अतः उनकी घर की तथा बाहर की जिंदगी एक-सी ही रही होगी। फ़ोटो में दिख रही तथा वास्तविक स्थिति में कोई अंतर नहीं रहा होगा। तभी तो निश्चितता तथा लापरवाही से फ़ोटो में बैठे हैं। वे ‘सादा जीवन उच्च विचार’ रखने में विश्वास रखते थे। अतः गरीबी से दुखी नहीं थे।  

         प्रेमचंद जी के चेहरे पर एक व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर लेखक परेशान हैं। वह सोचते हैं कि प्रेमचंद ने फटे जूतों में फ़ोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं किया। फिर लेखक को लगा कि शायद उनकी पत्नी ने जोर दिया होगा, इसलिए उन्होंने फटे जूते में ही फ़ोटो खिंचा लिया होगा। लेखक प्रेमचंद की इस दुर्दशा पर रोना चाहते हैं किंतु उनकी आँखों के दर्द भरे व्यंग्य ने उन्हें रोने से रोक दिया।  

         लेखक सोचते हैं कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए तो जूते, कपड़े, यहाँ तक कि बीवी भी माँग लेते हैं, फिर प्रेमचंद ने किसी के जूते क्यों नहीं माँगे । लेखक कहते हैं कि लोग तो इत्र लगाकर फोटो खिचाते है जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।

         लेखक कहते हैं कि मेरा भी तो जूता फट गया है किंतु वह ऊपर से तो ठीक है। मैं पर्दे का पूरी तरह से ध्यान रखता हूँ। मैं अपनी उँगली को बाहर नहीं निकलने देता। मैं इस तरह फटा जूता पहनकर फ़ोटो तो कभी नहीं खिंचवा सकता।  

         लेखक प्रेमचंद की व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर आश्चर्यचकित हैं। वे सोच रहे हैं कि इस व्यंग्य भरी मुस्कान का आखिर क्या मतलब हो सकता है। क्या उनके साथ कोई हादसा हो गया या होरी का गोदान हो गया? या हल्कू किसान के खेत को नीलगायों ने चर लिया है या माधो ने अपनी पत्नी के कफ़न को बेचकर शराब पी ली है? या महाजन के तगादे से बचने के लिए प्रेमचंद को लंबा चक्कर काटकर घर जाना पड़ा है जिससे उनका जूता घिस गया है? लेखक को याद आता है कि ईश्वर-भक्त संत कवि कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने से घिस गया था।

         अचानक लेखक को समझ आया कि प्रेमचंद का जूता लंबा चक्कर काटने से नहीं फटा होगा बल्कि वे सारे जीवन किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। रास्ते में पड़ने वाले टीले से बचकर निकलने के बजाए वे उसे ठोकरे मारते रहे होंगे। उन्हें समझौता करना पसंद नहीं है। जिस प्रकार होरी अपना नेम-धरम नहीं छोड़ पाए, या फिर नेम-धरम उनके लिए मुक्ति का साधन था।  

 

         लेखक मानते हैं कि प्रेमचंद की उँगली किसी घृणित वस्तु की ओर संकेत कर रही है, जिसे उन्होंने ठोकरें मार-मारकर अपने जूते फाड़ लिए हैं। वे उन लोगों पर मुस्करा रहे हैं जो अपनी उँगली को ढकने के लिए अपने तलवे घिसते रहते हैं।  

लेखक कहते हैं कि मेरा भी तो जूता फट गया है किंतु वह ऊपर से तो ठीक है। मैं पर्दे का पूरी तरह से ध्यान रखता हूँ। मैं अपनी उँगली को बाहर नहीं निकलने देता। मैं इस तरह फटा जूता पहनकर फ़ोटो तो कभी नहीं खिंचवा सकता।  

         लेखक प्रेमचंद की व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर आश्चर्यचकित हैं। वे सोच रहे हैं कि इस व्यंग्य भरी मुस्कान का आखिर क्या मतलब हो सकता है। क्या उनके साथ कोई हादसा हो गया या होरी का गोदान हो गया? या हल्कू किसान के खेत को नीलगायों ने चर लिया है या माधो ने अपनी पत्नी के कफ़न को बेचकर शराब पी ली है? या महाजन के तगादे से बचने के लिए प्रेमचंद को लंबा चक्कर काटकर घर जाना पड़ा है जिससे उनका जूता घिस गया है? लेखक को याद आता है कि ईश्वर-भक्त संत कवि कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने से घिस गया था।

         अचानक लेखक को समझ आया कि प्रेमचंद का जूता लंबा चक्कर काटने से नहीं फटा होगा बल्कि वे सारे जीवन किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। रास्ते में पड़ने वाले टीले से बचकर निकलने के बजाए वे उसे ठोकरे मारते रहे होंगे। उन्हें समझौता करना पसंद नहीं है। जिस प्रकार होरी अपना नेम-धरम नहीं छोड़ पाए, या फिर नेम-धरम उनके लिए मुक्ति का साधन था।

Plz mrk as brainliest ❤

Similar questions