Hindi, asked by mohammedfaizan258, 1 year ago

अिुच्छेद लिखए:
क) आँखो देखी बाढ़
hi can anyone write anuchade on a given topic.it should be 80-100 words.
plz its urgent

Answers

Answered by Siddhikishan
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बाढ़ का दृश्य पर निबंध

जल ही जीवन है । यह उक्ति पूर्णतया सत्य है । परंतु जिस प्रकार किसी भी वस्तु की अति या आवश्यकता से अधिक की प्राप्ति हानिकारक है उसी प्रकार जल की अधिकता अर्थात् बाढ़ भी प्रकृति का प्रकोप बनकर आती है जो अपने साथ बहुमूल्य संपत्ति संपदा तथा जीवन आदि समेटकर ले जाती है ।

गंगा गोदावरी ब्रह्‌मपुत्र गोमती आदि पवित्र नदियाँ एक ओर तो मनुष्य के लिए वरदान हैं वहीं दूसरी ओर कभी-कभी प्रकोप बनकर अभिशाप भी बन जाती हैं । हमारे देश में प्राय: जुलाई- अगस्त का महीना वर्षा ऋतु का है जब तपती हुई धरती के ज्वलन को छमछमाती हुई बूँदें ठंडक प्रदान करती हैं । नदियाँ जो सूखती जा रही थीं अब उनमें जल की परिपूर्णता हो जाती है ।

सभी स्वतंत्र रूप से बहने लगती हैं । यह वर्षा ऋतु और इसका पानी कितने ही कृषकों व श्रमजीवियों के लिए वरदान बन कर आता है । परंतु पिछले वर्ष हमारे यहाँ बाद का जो भयावह दृश्य देखने को मिला उससे मेरा ही नहीं अपितु सभी व्यक्तियों का हृदय चीत्कार कर उठा ।

पिछले वर्ष हमारे गाँव में पिछले सात दिनों से लगातार वर्षा हो रही थी । चारों ओर भरे पानी का दृश्य प्रलय का एहसास कराता था । गाँव से लगी हुई नदी का जलस्तर निरंतर बढ़ता ही जा रहा था । हर एक को अपने प्राण संकट में आते नजर आ रहे थे। इतनी वर्षा से ही ढाल के आधे से अधिक छोटे-छोटे घर पूर्ण अथवा आंशिक रूप से जल में विलीन हो चुके थे ।

हमारे गाँव में रहने वाले सभी लोग यथासंभव आवश्यक सामान लेकर ऊँचे टीले पर आ गए थे । उस ओर मनुष्यों एवं पशुओं का जमघट बढ़ता ही जा रहा था । कुछ लोग तो इतने भयभीत थे कि वे समझ नहीं पा रहे थे कि घर की वस्तुओं की रक्षा करें या अपने प्राण की ।

यह हमारा सौभाग्य ही था कि हमारा घर बहुत ऊँचाई पर था जिसके कारण हम बाद से पूर्णतया प्रभावित होने से बचे हुए थे । इसी बीच जब थोड़ी देर के लिए वर्षा रुकी तब मैं बाहर का दृश्य देखने के लिए छत पर पहुँच गया । वहाँ से मुझे जो दृश्य देखने को मिला वह हृदय विदारक था । थोड़ी देर के लिए तो मैं स्वयं पर संयम न रख सका और भय से काँप उठा ।

मेरा आधा गाँव पानी में लगभग डूब चुका था । कुछ घरों का केवल ऊपरी हिस्सा ही दिखाई दे रहा था । अनेकों ग्रामवासियों के कपड़े व अन्य आवश्यक सामान जल में तैरते दिखाई पड़ रहे थे । कुछ पशु जो बाद में फँसकर मर गए थे उनकी लाशें भी इधर-उधर तैर रही थीं ।

ममतामयी माँ के हृदय से लगा उसका नन्हा बेटा मेरे पलक झपकते ही उस जलगर्त में कहीं समा गया । यह देखकर मेरा दिल रो उठा । प्रकृति का यह विनाशक दृश्य मैं आज भी भुला नहीं पाता हूँ । जब-जब वे दृश्य मेरे स्मृति पटल पर उभरते हैं; तो मैं भय से काँप उठता हूँ ।

हमारे देश में प्रत्येक वर्ष किसी न किसी राज्य में बाढ़ आती रहती है जिससे देश को करोड़ों रुपयों का अधिभार उठाना पड़ता है । प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से बाढ़ के समय ही हमारे नेतागण व प्रशासन सजग होता दिखाई देता है और कुछ दिनों के उपरांत ही यह उनके लिए एक सामान्य घटना बन जाती है और वे दूसरे कार्यो में व्यस्त हो जाते हैं । स्वतंत्रता के पाँच दशकों के उपरांत भी हम इस समस्या का कोई स्थाई हल नहीं निकाल सके जिससे बाढ़ के द्‌वारा होने वाले नुकसान को अधिक से अधिक नियंत्रित किया जा सके ।

बाढ़ की रोकथाम सरकार का पूर्ण दायित्व है । इसे रोकने हेतु निरतंर प्रयास हो रहे हैं । इस दिशा में हमें आंशिक रूप से सफलता भी प्राप्त हुई है फिर भी अभी और भी प्रयास आवश्यक हैं । हमें विश्वास है कि आने वाले वर्षों में हम इन आपदाओं से होने वाले नुकसान को पूर्णत नियंत्रित कर सकेंगे ।

इसके लिए दीर्घकालीन रणनीति पर अमल करना होगा तथा जिन क्षेत्रों में प्रतिवर्ष बाढ़ आता है वहाँ जलसंचय के वैकल्पिक उपाय करने होंगे ।

Answered by s2kumar20075
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Answer:

बाढ़ का दृश्य पर निबंध

जल ही जीवन है । यह उक्ति पूर्णतया सत्य है । परंतु जिस प्रकार किसी भी वस्तु की अति या आवश्यकता से अधिक की प्राप्ति हानिकारक है उसी प्रकार जल की अधिकता अर्थात् बाढ़ भी प्रकृति का प्रकोप बनकर आती है जो अपने साथ बहुमूल्य संपत्ति संपदा तथा जीवन आदि समेटकर ले जाती है ।

गंगा गोदावरी ब्रह्‌मपुत्र गोमती आदि पवित्र नदियाँ एक ओर तो मनुष्य के लिए वरदान हैं वहीं दूसरी ओर कभी-कभी प्रकोप बनकर अभिशाप भी बन जाती हैं । हमारे देश में प्राय: जुलाई- अगस्त का महीना वर्षा ऋतु का है जब तपती हुई धरती के ज्वलन को छमछमाती हुई बूँदें ठंडक प्रदान करती हैं । नदियाँ जो सूखती जा रही थीं अब उनमें जल की परिपूर्णता हो जाती है ।

सभी स्वतंत्र रूप से बहने लगती हैं । यह वर्षा ऋतु और इसका पानी कितने ही कृषकों व श्रमजीवियों के लिए वरदान बन कर आता है । परंतु पिछले वर्ष हमारे यहाँ बाद का जो भयावह दृश्य देखने को मिला उससे मेरा ही नहीं अपितु सभी व्यक्तियों का हृदय चीत्कार कर उठा ।

पिछले वर्ष हमारे गाँव में पिछले सात दिनों से लगातार वर्षा हो रही थी । चारों ओर भरे पानी का दृश्य प्रलय का एहसास कराता था । गाँव से लगी हुई नदी का जलस्तर निरंतर बढ़ता ही जा रहा था । हर एक को अपने प्राण संकट में आते नजर आ रहे थे। इतनी वर्षा से ही ढाल के आधे से अधिक छोटे-छोटे घर पूर्ण अथवा आंशिक रूप से जल में विलीन हो चुके थे ।

हमारे गाँव में रहने वाले सभी लोग यथासंभव आवश्यक सामान लेकर ऊँचे टीले पर आ गए थे । उस ओर मनुष्यों एवं पशुओं का जमघट बढ़ता ही जा रहा था । कुछ लोग तो इतने भयभीत थे कि वे समझ नहीं पा रहे थे कि घर की वस्तुओं की रक्षा करें या अपने प्राण की ।

यह हमारा सौभाग्य ही था कि हमारा घर बहुत ऊँचाई पर था जिसके कारण हम बाद से पूर्णतया प्रभावित होने से बचे हुए थे । इसी बीच जब थोड़ी देर के लिए वर्षा रुकी तब मैं बाहर का दृश्य देखने के लिए छत पर पहुँच गया । वहाँ से मुझे जो दृश्य देखने को मिला वह हृदय विदारक था । थोड़ी देर के लिए तो मैं स्वयं पर संयम न रख सका और भय से काँप उठा ।

मेरा आधा गाँव पानी में लगभग डूब चुका था । कुछ घरों का केवल ऊपरी हिस्सा ही दिखाई दे रहा था । अनेकों ग्रामवासियों के कपड़े व अन्य आवश्यक सामान जल में तैरते दिखाई पड़ रहे थे । कुछ पशु जो बाद में फँसकर मर गए थे उनकी लाशें भी इधर-उधर तैर रही थीं ।

ममतामयी माँ के हृदय से लगा उसका नन्हा बेटा मेरे पलक झपकते ही उस जलगर्त में कहीं समा गया । यह देखकर मेरा दिल रो उठा । प्रकृति का यह विनाशक दृश्य मैं आज भी भुला नहीं पाता हूँ । जब-जब वे दृश्य मेरे स्मृति पटल पर उभरते हैं; तो मैं भय से काँप उठता हूँ ।

हमारे देश में प्रत्येक वर्ष किसी न किसी राज्य में बाढ़ आती रहती है जिससे देश को करोड़ों रुपयों का अधिभार उठाना पड़ता है । प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से बाढ़ के समय ही हमारे नेतागण व प्रशासन सजग होता दिखाई देता है और कुछ दिनों के उपरांत ही यह उनके लिए एक सामान्य घटना बन जाती है और वे दूसरे कार्यो में व्यस्त हो जाते हैं । स्वतंत्रता के पाँच दशकों के उपरांत भी हम इस समस्या का कोई स्थाई हल नहीं निकाल सके जिससे बाढ़ के द्‌वारा होने वाले नुकसान को अधिक से अधिक नियंत्रित किया जा सके ।

बाढ़ की रोकथाम सरकार का पूर्ण दायित्व है । इसे रोकने हेतु निरतंर प्रयास हो रहे हैं । इस दिशा में हमें आंशिक रूप से सफलता भी प्राप्त हुई है फिर भी अभी और भी प्रयास आवश्यक हैं । हमें विश्वास है कि आने वाले वर्षों में हम इन आपदाओं से होने वाले नुकसान को पूर्णत नियंत्रित कर सकेंगे ।

इसके लिए दीर्घकालीन रणनीति पर अमल करना होगा तथा जिन क्षेत्रों में प्रतिवर्ष बाढ़ आता है वहाँ जलसंचय के वैकल्पिक उपाय करने होंगे ।

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