A essay with 150 words
*अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम से लोकतंत्र भावना आहत होती हैं ।*
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किसी सूचना या विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बिना किसी रोकटोक के अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) कहलाती है। अत: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हमेशा कुछ न कुछ सीमा अवश्य होती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद १९(१) के तहत सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है[1]।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्ति-नियुक्ति निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। राष्ट्र-राज्य के पास यह अधिकार सुरक्षित होता है कि वह संविधान और कानूनों के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किस हद तक जाकर बाधित करने का अधिकार रखता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे- वाह्य या आंतरिक आपातकाल या राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अभिव्यक्ित की स्वंतत्रता सीमित हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौमिक मानवाधिकारों के घोषणा पत्र में मानवाधिकारों को परिभाषित किया गया है। इसके अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा जिसके तहत वह किसी भी तरह के विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को स्वतंत्र होगा।
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दुनिया भर के अधिकांश देशों के नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी शामिल है। यह अधिकार उन देशों में रहने वाले लोगों को कानून द्वारा दंडित होने के डर के बिना अपने मन की बात करने के लिए सक्षम बनाता है।
अभिव्यक्ति की आजादी की उत्पत्ति
अभिव्यक्ति की आजादी की अवधारणा बहुत पहले ही उत्पन्न हुई थी। इंग्लैंड के विधेयक अधिकार 1689 ने संवैधानिक अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी को अपनाया और यह अभी भी प्रभाव में है। 1789 में फ्रेंच क्रांति ने मनुष्य और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा को अपनाया। इसके साथ ही एक स्वतंत्र नतीजे के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी की पुष्टि हुई। अनुच्छेद 11 में अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की घोषणा कहती है:
"सोच और विचारों का नि:शुल्क संचार मनुष्य के अधिकारों में सबसे अधिक मूल्यवान है। हर नागरिक तदनुसार स्वतंत्रता के साथ बोल सकता है, लिख सकता है तथा अपने शब्द छाप सकता है लेकिन इस स्वतंत्रता के दुरुपयोग के लिए भी वह उसी तरह जिम्मेदार होगा जैसा कि कानून द्वारा परिभाषित किया गया है"।
मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948 में अपनाई गई थी। इस घोषणा के तहत यह भी बताया गया है कि हर किसी को अपने विचारों और राय को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी अब अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मानवाधिकार कानून का एक हिस्सा बन गए हैं।अभिव्यक्ति की आजादी - लोकतंत्र का आधार
एक लोकतांत्रिक सरकार अपने देश की सरकार को चुनने के अधिकार सहित अपने लोगों को विभिन्न अधिकार देती है। अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के आधार के रूप में जानी जाती है।
अगर निर्वाचित सरकार शुरू में स्थापित मानकों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर रही है और नागरिकों को इससे सम्बंधित मुद्दों पर अपनी राय देने का अधिकार नहीं है तो सरकार का चयन ही फायदेमंद नहीं है। यही कारण है कि लोकतांत्रिक राष्ट्रों में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार एक जरूरी अधिकार है। यह लोकतंत्र का आधार है।
निष्कर्ष
अभिव्यक्ति की आजादी लोगों को अपने विचारों को साझा करने और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की शक्ति प्रदान करती है।
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