Hindi, asked by nameera5103, 1 year ago

A esssay on daya dharam ka moul hai

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Answered by sunita230
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दया एक दैवी गुण है जिस पर सभी धर्मों की रूपरेखा स्थिर है। दया के बिना कोई धर्म, धर्म नहीं रहता परम भक्त तुलसीदास जी ने इसी तथ्य को व्यक्त करते हुए लिखा है-

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।

तुलसी दया न छोड़िए जब लगि घट में प्रान॥

वस्तुतः दया ही अपने आप में सबसे बड़ा धर्म है जिसका आचरण करने से मनुष्य का आत्म विकास होता है। समस्त हिंसा, द्वेष, वैर विरोध की भीषण लपटें दया का संस्पर्श पाकर शाँत हो जाती हैं। दया परमात्मा का निजी गुण है। इसीलिए भक्त, संतजन भावना को दयासिन्धु कहते हैं। परमात्मा का यह दिव्य गुण जब सज्जनों के माध्यम से धरती पर अमृत बनकर बरसता है तो इससे सभी का भला होता है। लोक विजेताओं से भी बड़ा है दया का राजमुकुट। और इसकी शक्ति जिससे हिंसक भी अहिंसक, दुश्मन भी मित्र बन जाते हैं, अपार है।

दया एक दैवी गुण है। इसका आचरण करके मनुष्य देवत्व प्राप्त कर सकता है। दयालु हृदय में परमात्मा का प्रकाश ही प्रस्फुटित हो उठता है। क्योंकि भगवान स्वयं दयास्वरूप है। दयालु हृदय में ही उसका निवास होता है। दया के आचरण से मनुष्य में अन्य दैवी गुण स्वतः ही पैदा होने लगते हैं। महर्षि व्यास ने लिखा है ‘सर्वप्राणियों के प्रति दया का भाव रखना ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है।’ महात्मा गाँधी ने कहा था ‘दया और सत्य का अन्योन्याश्रित संबंध है। जहाँ दया नहीं वहाँ सत्य नहीं।’ विदेशी विचारक होम ने लिखा है जो दूसरों पर दया नहीं करता उसे परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती।

दया अपने आप में प्रसन्नता, प्रफुल्लता का मधुर झरना है। जिस हृदय में दया निरन्तर निर्झरित होती रहती है वहीं स्वयंसेवी आह्लाद, आनन्द के मधुर स्वर निनादित होते रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि दयालु व्यक्ति सहज आत्मसुख से सराबोर रहता है।

दया की शक्ति अपार है। सेना और शस्त्रबल से तो किसी राज्य पर अस्थायी विजय मिलती है। किन्तु दया से स्थायी और अलौकिक विजय मिलती है। दयालु व्यक्ति मनुष्यों को ही नहीं अन्य प्राणियों को भी जीत लेता है। सर्व हितचिन्तक दयालु व्यक्ति से सभी प्राणियों का भय, अहित की आशंका दूर हो जाती है। उसके सान्निध्य में सभी प्राणी अपने आपको सुरक्षित और निश्चिन्त समझते हैं। ऋषि आश्रमों के उपाख्यानों से मालूम होता है कि वहाँ सभी प्राणी निर्भय होकर विचरण करते थे। ऋषियों के बालक उनके साथ खेलते थे। इतना ही नहीं हिंसक पशु भी अपनी हिंसा भूलकर अन्य अहिंसक पशुओं के साथ विचरण करते थे। ऐसी है दया की शक्ति। दयालु ऋषियों के निवास से आश्रमों का वातावरण हिंसा, क्रूरता अन्याय द्वेष आदि से पूर्णतः मुक्त होता था।

दया से दूसरों का विश्वास जीता जाता है। यह प्राणियों के हृदय पर प्रभाव डालती है। दया समाज में परस्पर की सुरक्षा और सौहार्द की गारंटी है, क्योंकि इसमें दूसरों के भले की भावना निहित होती है। जिस समाज में लोग एक दूसरे के प्रति दयालु होते हैं, परस्पर सहृदय और सहायक बनकर काम करते हैं वहाँ किसी तरह के विग्रह की संभावना नहीं रहती। विग्रह, अशान्ति, क्लेश वहीं निवास करते हैं जहाँ व्यवहार में क्रूरता है। क्रूरता अपना अन्त स्वयं ही कर लेती है। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप विभिन्न उपद्रव उठ खड़े होते हैं। दया से स्नेह, आत्मीयता आदि कोमल भावों का विकास होता है। दयालुता ही तो समाज को एकाकार करती है।

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Answered by vikas0932
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गोस्वामी तुलसीदास का प्रशिद्ध बचन है – 


दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान |

तुलसी दया न छोड़िये जा घट तन में प्राण ||


इस कथन से स्पष्ट होता है कि धर्म का मूल है –दया या करुणा | दया भाव से हिम्नुश्य का मन द्रवित होता है | किसी दुखी को देखकर उसका दुश दूर करने की कोशिश करना ही धर्म है | वास्तव में करुणा ईश्वरीय गुण है | भगवान कृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है – जब जब धरा पर धर्म की हानि और अधर्म की अधिकता होती है, तब-तब में अवतार धारण करता हूँ | धरम की रक्षा के लिए स्वयं धरती पर जन्म लेना भगवन की करुणा ही है |

संसार में जितने भी महान इन्सान हुए हैं, सबके जीवन में करूणा का अंग अवश्य रहा है | भगवान बुद्ध ने राजपाट छोड़कर दुखी लोगों के दुःख दूर करने में अपना जीवन लगा दिया | नानक ने संसारिकता त्यागकर ही महानता अर्जित की | गाँधी जी ने अपनी वकालत त्यागकर देशवासियों के लिए कर्म किया, तभी सारे देश ने उन्हें अपना बापू माना | वास्तव में जब भी कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जनहित का आचरण करता है, वह हमारे लिए पूज्य बन जाता है |


करूणा निस्वार्थ होती है | करुणा सात्विक भाव है | करूणा न तो अपने-पराए का भेदभाव देखती है, और न ही अपनी हनी की परवाह करती है | करूणा में अदभुत प्रेरणा होती है | दयावान किसी को कष्ट में देखकर चुपचाप नहीं बैठ सकता | उनकी आत्मा उसे मज़बूर करती है कि दयावान दया करने से पहले अपना हानि-लाभ निश्चित करे | यहाँ तक कि वह किसी के प्राण बचाकर भी उसके बदले उससे कुछ नहीं चाहता | दया निस्वार्थ ही होती है |

एक प्रसिद्ध सूक्ति है – “नेकी कर कुएँ में डाल |” यह सूक्ति करूणा की ही व्याख्या करती है, वही उसका उचित मूल्य है |

करूणा रक्षा में सहायक है | भगवान ने करूणा की भावना मनुष्य को इसलिए दी है ताकि यस संसार बना रहे | अगर कोई राक्षस किसी बेकसूर को मारे, या किसी की रोटी छीने तो यह करूणा आदमी को प्रेरणा देती है कि बेकसूर की रक्षा हो | न्याय की रक्षा करना धर्म है |

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