अंगूर देखकर लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया
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एक जंगल था बहा एक लोमड़ी रहती थी, जो अंगूर खाने की बहुत शौकीन थी। एक बार वह अंगूरों के बाग से गुजर रही थी।
चारों ओर स्वादिष्ट अंगूरों के गुच्छे लटक रहे थे। मगर वे सभी लोमड़ी की पहुंच से बाहर थे।
अंगूरों को देखकर लोमड़ी के मुह में पानी आजाता । वह सोचने लगी- ‘वाह! कितने सुन्दर और मीठे अंगूर हैं।
काश मैं इन्हें खा सकती।’ यह सोचकर लोमड़ी अपने मन को मना के उछल-उछल कर अंगूरों के गुच्छों तक पहुंचने की कोशिश करने लगी। परंतु वह हर बार नाकाम रह जाती। बस, अंगूर के गुच्छे उसकी उछाल से कुछ ही दूरी पे रह जाते थे |
अंत में बेचारी लोमड़ी उछल-उछल कर थक गई और अपने घर की ओर चल दी।
जाते-जाते उसने सोचा- ‘ये अंगूर खट्टे हैं। इन्हें पाने के लिए अपना समय नष्ट करना ठीक नहीं।’
इस तरह बह अपने मन को मनाके बहा से चली जाती है, और कमी अंगूरों में निकाल देती |
इस तरह लोमड़ी ने अपनी असमर्थता छुपाने के लिए कहा कि अंगूर खट्टे हैं । समय के साथ यह कहावत प्रचलित हो गई और लोग इसका प्रयोग समान्य बोलचाल की भाषा में करने लगे ।
इस कहानी से यह सार निकलता है की, “यदि कोई ब्यक्ति किसी चीज़ को नहीं पा नहीं सकता, तो बह उससे तुच्छ दुष्टि से देखने लगता है”|
सीख – जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को प्राप्त नहीं कर पाता, तो अपनी कमज़ोरी छुपाने के लिए बहाना बनाता है और उस वस्तु को ही तुच्छ साबित करने की कोशिश करता है।