अंग्रेज़ सरकार ने जनता को कुचलने के लिए दमनकारी बिल केंद्रीय असेंबली में पेश किया। देश ने स्वर में उसका विरोध किया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंका और जान-बूझकर वहीं गिरफ़्तार हो गए। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद के और भी साथी गिरफ़्तार हो गए, तब दल के पुनर्गठन और उसे आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी अकेले आजाद के कंधों पर आ गई। इसके लिए उन्हें प्रयाग जाना पड़ा। एक दिन वे एल्फ्रेड पार्क में बैठे हुए थे। एक विश्वासघाती द्वारा सूचना देने पर एकाएक अंग्रेज़ सिपाहियों का एक बड़ा दल वहाँ आ पहुँचा। चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेज़ सरकार के हाथ आने से कहीं अच्छा अपने देश के लिए शहीद होना समझा।
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Explanation:
The British government introduced a repressive bill in the Central Assembly to crush the people. The country opposed him in voice. Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt threw a bomb in the assembly and were deliberately arrested there. After this more companions of Chandrashekhar Azad were arrested, then the responsibility of restructuring and taking forward the party fell on the shoulders of Azad alone. For this he had to go to Prayag. One day he was sitting in Alfred Park. On being informed by a treacherous, suddenly a large group of British soldiers arrived there. Chandrashekhar Azad considered it better to be a martyr for his country than to be in the hands of the British government.