अंगदोरजी के साथ लेखिका मे किस प्रकार चढाई
की 80 - 100 शब्दों मे लिखिए
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अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। यह संतोषजनक प्रगति थी। जबमैं बेस कैंप में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी केसाथ हमारे पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल केप्रत्येक सदस्य और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब मेरी बारी आई, मैंने अपना परिचय यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल हीनौसिखिया(अनुभवहीन)हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान है। तेनजिंग हँसे और मुझसे कहा कि एवरेस्ट उनकेलिए भी पहला अभियान है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा था। फिर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा, तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए। 15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा केदिन मैं ल्होत्से की बर्फीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नायलॉन केबने तंबू केकैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे। लोपसांग, तशारिंग मेरे तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मजबूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे। मैं गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे केलगभग मेरे सिर केपिछले हिस्से मेंकिसी एक सख्त चीज केटकराने से मेरी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक जोरदार धमाका भी हुआ। तभी मुझे महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।
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लेखिका को अंगदोरजी के साथ साउथ कोल से ऊपर की चढ़ाई करने में बर्फीली हवाओं से सामना करना पड़ा, किंतु आरोही उपस्करों के कारण लेखिका स्वयं को काफी सुरक्षित व गरम महसूस कर रही थीं। उन दोनों ने बगैर रस्सी केही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से बिना ऑक्सीजन के ऊपर चढ़ते थे। लेखिका को भी उनके साथ चढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हुई।