Science, asked by vibek5143, 1 year ago

a good essay on mehangai ki maar (hindi)................ urgently

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Answered by ridhya77677
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प्रस्तावना:

भारत की बहुत सी आर्थिक समस्याओं में महंगाई की समस्या एक मुख्य है । वर्तमान समय में महंगाई की समस्या अत्यन्त विकराल रूप धारण कर चुकी है । एक दर से बढ़ने वाली महंगाई तो आम जनता किसी न किसी तरह से सह लेती है, लेकिन कुछ समय से खाद्यान्नों और कई उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्यों में भारी वृद्धि ने उप कर दिया है ।

वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि का क्रम इतना तीव्र है कि आप जब किर को दोबारा खरीदने जाते हैं, तो वस्तु का मूल्य पहले से अधिक हो चुका होता है । गरीब और गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के मुख्य खाद्य पदार्थ गेहूँ के लगभग एक-तिहाई बढ़ोतरी इस समस्या के विकराल होने का संकेत दे रही है ।

चिन्तनात्मक विकास:

कीमतों में निरन्तर वृद्धि एक दहशतकारी मोड़ ले रही है । कारण मनुष्य की समाज में उन्नत जीवन जीने की इच्छा एक दिवास्वप्न हो गई है । पदार्थो की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई है, इसका कारण है हमारी कृषि व्यवस्था र्क अवस्था ।

कालाधन, जमाखोरी, राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार, गरीबी, जनसंख्य अल्पविकास, राष्ट्रीयकृत उद्योगों में घाटा, सरकारी कुव्यवस्था, रुपये का अवमूल्यन, मुद्रास्फीति इत्यादि ऐसे कारक हें जो निरन्तर महंगाई को बढ़ाये जा रहे हैं । महंगाई आज राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बन गई है । महंगाई के कारण असन्तोष बढ़ रहा है हर वर्ग के लोग त्रस्त हैं । बढ़ती महंगाई अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को प्रभावित कर प्रत्येक वस्तु के मूल्य एवं किराये बढ़ रहे हैं ।

प्रत्येक उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति में रही है । जहाँ तक खाद्यान्नों का प्रश्न है उसकी वृद्धि दर तो और भी कम है यानि तव प्रतिशत प्रतिवर्ष लगभग जनसंख्या वृद्धि दर के समतुल्य । इसलिए इसका कारण अन की जरूरत नहीं है कि देश में खाद्यानने संकट क्यों है और मूल्य बढ़ क्यों रहे है । यह है कि भारत में चूंकि कृषि ही आजीविका का मुख्य आधार है इसलिये यह सारे प्रभावित करती है ।

सरकार ने कृषि की घोर उपेक्षा की है, काले धन को रोकने के नहीं किया गया है तथा विदेशी धन की बाढ़ के कारण बढ़ते भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का भी इंतजाम नहीं किया गया है । यही कारण है कि वह मुद्रास्फीति को रोक नहीं प जिससे भारत में यह साल दर साल ऊपर जा रही है ।

जब तक सरकार वर्तमान् पर कायम रहेगी, मुद्रस्फीति बढ़ेगी और आम आदमी का जीवन दूभर होता रहेगा । वृद्धि का सरकार के पास कोई जवाब नहीं है । सरकारी नीतियों की विफलता ने य’ में वृद्धि की है । जब तक इन सभी विसंगतिर्यो को दूर नहीं किया जा सकता तब तक महंगाई कम नहीं हो सकती ।

उपसंहार:

कीमतों में वृद्धि के कारणों को दूर करने के साथ-साथ आवश्यकता संकल्प की और उसके लिए राष्ट्रीय संस्कार तथा संचेतना की । राष्ट्र के कर्णधार यदी अपने व्यक्तिगत और दलगत स्वार्थों से ऊपर उठकर विचार करें, तो देश अपने सभी विद्द्यामान तथा उपलब्ध साधनों के आधार पर राष्ट्र की प्रगति तथा सुख समृद्धि के मार्ग में आने वार और कठिनाइयों को दूर कर सफलता अर्जित कर सकता है ।
भारत में महंगाई की समस्या अत्यन्त विकट रूप धारण करती जा रहा ह । पहले तो महंगाई का मूल कारण जनसंख्या वृद्धि को ही माना जाता था किन्तु आज अनेक कारण ऐसे गए हे जो इस समस्या को और भी जटिल बनाते जा रहे हैं । कुछ धनी वर्गो को छोड़ का प्रत्येक वर्ग इससे प्रभावित है ।

विगत कुछ वर्षो से मुद्रस्फीति ने आम आदमी की कमर तोड़ दो है । बावजूद इसके लगातार यह घोषणा करती रही है कि वह मूल्य को नियन्त्रित करने में सफल रही है । आज की हालत यह हे कि आम आदमी महंगाई की आग में बुरी तरह झुलसता सत्रास की हालत रहा है, यइ कोई रहस्य नहीं है ।

बेशक, गोह की किल्लत एवं अचानक उसकी उछलती के कारण ही देश का ध्यान महंगाई के संकट पर केन्द्रित हुआ हे । किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि दामों की बढोतरी का सकट यहीं तक सिमटा है । दैनिक उपभोग की शायद ही चीज हो जिसकी कीमत को न्यायसंगत माना जाए ।

सच्ची बात यह है कि बढती कीमते जिंदगी में इस कदर शुमार हो चुकी हैं कि इसकी दैनंदिन चुभनों पर हम आह नहीं भ जाते हैं क्योंकि हमे महंगाई की मार से बचने का कोई ठोस रास्ता कहीं भी नजर नइ लेकिन कम से कम अब वह फिल्मी गाना वयंग्योक्ति भरा नहीं लगता जिसमें कहा गया है की “पहले मुट्‌ठी भर पैसे से झोली भर शक्कर लाते थे, अब झोले भर पैसे जाते हैं, मुट्ठीभर शक्कर लाते हैं ।”

किसी बुजुर्ग से बात करिए । इस बात की पुष्टि हो जाएगी कि तीन-दशक पूर्व महज दस से पद्रह रुपए में सब्जी सहित दैनिक उपयोग की इतनी चीजें मिल जाती थीं कि एक आदमी के लिए ढोना मुश्किल हो जाता था और आज इतने चीजें आप हाथ में लिए चले जाए ।

तो यह है महंगाई का आलम । यहाँ यदि हम विस्तार से न भी जाएं तो भी हमें पता चल जायेगा कि किस चीज की कीमत पिछले तीस-चालीस सालो में कितने गुना बढी है । जो आँकड़े हैं, वे स्वयं अपनी कहानी कहते हैं पाठक जोड-घटाव करके हिसाब लगाए तो चकराने ब सामने आएंगे ।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों की तो बातें छोड़ दीजिए क्योंकि विश्व अथ इसे मानक की इज्जत नहीं मिली हुई हे । थोक मूल्य सूचकांकों को भी आधार बनाएँ तो सन 1961-62 के साढे तीन दशको में कई उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें तीन हजार से हजार प्रतिशत तक बढ गई हैं । कुछ क्षेत्रों में इससे भी कई गुना ज्यादा दाम बड़े हैं ।

उदाहरणस्वरुप, सन् 1961 में टमाटर की कीमत 10-15 पैसे किलो थी । आज यह 12 से 15 रूपय किलो है । यानी टमाटर को कीमत मे सौ गुना की बढोतरी हो गई । इसी तरह तब दूध एक रूपय में ढाई से तीन लीटर मिल जाता था, आज यह 12 से 15 रुपए लीटर है ।

अरहर की दाल तब 80 पैसे में 1 रुपये किलो उपलब्ध थी । आज यह 30 से 35 रुपए किलो मिल रही है अर्थात 30-35 गुना की वृद्धि । बस किराये को ही लीजिए । महज दो दशक पूर्व न्यूनतम वि तथा अधिकतम 35 पैसे था ।


Answered by PRACHET8143
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( HOPE THIS HELPS YOU )

THANK YOU

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