Hindi, asked by namitakumari271, 10 months ago

(a) हाथी के दाँत गद्य की समीक्षा कीजिए।​

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Answered by shishir303
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“हाथी के दाँत” उपन्यास ‘अमृतराय’ द्वारा लिखा गया एक प्रतीकात्मक उपन्यास है। अमृतराय हिंदी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के सुपुत्र थे।

‘हाथी के दाँत’ उपन्यास उन्होंने 1956 में लिखा था। इस उपन्यास में उन्होंने भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सामंतवाद का दृष्टिकोण तथा निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग के प्रति उनकी सोच और व्यवहार के बारे में लिखा है। इस उपन्यास में एक पात्र ठाकुर प्रद्युम्न सिंह सामंती व्यवस्था का प्रतीक है, जो अपने कुकृत्यों तथा अत्याचारों के लिए कुख्यात है। कहानी के अन्य पात्र चंपा और चंद्रिका मध्यमवर्ग की आर्थिक विषमताओं से जूझने वाले मध्यम वर्गीय हैं जो ठाकुर के शोषण के शिकार हैं।

चंपा एक निम्न मध्यम वर्ग की युवती है जो अपनी निम्न आर्थिक स्थिति से निजात पान के लिये महत्वाकांक्षायें पाल लेती है और उसकी यही महत्वाकांक्षायें उसके परिवार में तनाव और कलह का कारण बन जाती हैं। इस कारण वह लोभवश ठाकुर प्रद्युम्न सिंह के चंगुल में फंस जाती है। जब चंपा के पति चंद्रिका को इस बात का पता चलता है तो उसे सहज रुप से विश्वास नहीं होता, लेकिन ठाकुर और चंपा को एक साथ देख लेने पर उसे विश्वास करना पड़ता है और वह दोनों से बदला लेने का विचार करता है। लेकिन उससे पहले ही ठाकुर चंद्रिका की हत्या करवा देता है। पुलिस को यह बात पता है, लेकिन ठाकुर दबंग है, प्रभावशाली है। इसलिए पुलिस ठाकुर प्रद्युमन को गिरफ्तार नहीं करती।

कहानी की एक अन्य पात्र रत्ना मध्यमवर्ग में बदलाव का प्रतीक बनती है और ठाकुर प्रद्युम्न सिंह के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती है। रत्ना मध्यमवर्ग में बदलाव की एक नई चिंगारी का प्रतीक है और उसका विरोध उसकी ताकत बनता है।

इस उपन्यास का “हाथी के दाँत” शीर्षक इसलिये रखा गया क्योंकि इस उपन्यास में यह बताया गया है कि भारत की स्वतंत्रता से पहले जो सामंत लोग शोषण का प्रतीक थे, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह अपने चेहरे पर एक सफेदपोश का मुखौटा लगाने में कामयाब हो गए थे। वह दो दोहरे चरित्र वाली जिंदगी जीते थे। अंदर से तो वह शोषक ही थे, परंतु बाहर दिखाने के लिए वह जननायक व जन सेवक के रूप में स्वयं को दिखाते थे अर्थात हाथी के दांत दिखाने के अलग थे और खाने के अलग थे। इस कहानी में ठाकुर प्रद्युम्न सिंह भी इसी सामंतवादी दोहरे चरित्र का प्रतीक था।

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