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Explanation:
Explanation:इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2009 तक संसदीय प्रणाली वाले सभी देशों में कुल 44,113 सांसदों में से महिलाएं सांसद केवल 112 थी| विशव की एक चौथाई संसदों में महिला सांसदों की संख्या 10% से भी कम है| अरब देशों में तो स्थिति और भी दयनीय है| सयुंक्त राष्ट्र के अनुसार, संसद में महिला भागीदारी 30% होनी चाहिए, जबकि अमेरिका के दोनों सदनों में महिला सांसदों की संख्या 20% के आस-पास है| इंग्लैंड में भी महिला सांसदों की संख्या इतनी ही है ,जबकि पाकिस्तान में 22 परसेंट| चीन, रूस, कोरिया, आदि देशों में महिलाओं को 33% आरक्षण पहले ही सही प्रावधान किया हुआ है,अभी फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, इंदौर में आदि देशों के राजनीतिक पार्टियों ने भी महिलाओं को 33% आरक्षण दे रखा है|
Explanation:इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2009 तक संसदीय प्रणाली वाले सभी देशों में कुल 44,113 सांसदों में से महिलाएं सांसद केवल 112 थी| विशव की एक चौथाई संसदों में महिला सांसदों की संख्या 10% से भी कम है| अरब देशों में तो स्थिति और भी दयनीय है| सयुंक्त राष्ट्र के अनुसार, संसद में महिला भागीदारी 30% होनी चाहिए, जबकि अमेरिका के दोनों सदनों में महिला सांसदों की संख्या 20% के आस-पास है| इंग्लैंड में भी महिला सांसदों की संख्या इतनी ही है ,जबकि पाकिस्तान में 22 परसेंट| चीन, रूस, कोरिया, आदि देशों में महिलाओं को 33% आरक्षण पहले ही सही प्रावधान किया हुआ है,अभी फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, इंदौर में आदि देशों के राजनीतिक पार्टियों ने भी महिलाओं को 33% आरक्षण दे रखा है|Mahila Aarakshan Essay in Hindi
Explanation:इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2009 तक संसदीय प्रणाली वाले सभी देशों में कुल 44,113 सांसदों में से महिलाएं सांसद केवल 112 थी| विशव की एक चौथाई संसदों में महिला सांसदों की संख्या 10% से भी कम है| अरब देशों में तो स्थिति और भी दयनीय है| सयुंक्त राष्ट्र के अनुसार, संसद में महिला भागीदारी 30% होनी चाहिए, जबकि अमेरिका के दोनों सदनों में महिला सांसदों की संख्या 20% के आस-पास है| इंग्लैंड में भी महिला सांसदों की संख्या इतनी ही है ,जबकि पाकिस्तान में 22 परसेंट| चीन, रूस, कोरिया, आदि देशों में महिलाओं को 33% आरक्षण पहले ही सही प्रावधान किया हुआ है,अभी फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, इंदौर में आदि देशों के राजनीतिक पार्टियों ने भी महिलाओं को 33% आरक्षण दे रखा है|Mahila Aarakshan Essay in Hindiमहिला आरक्षण विधेयक पर निबंध – Mahila Aarakshan Essay in Hindi
Explanation:इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2009 तक संसदीय प्रणाली वाले सभी देशों में कुल 44,113 सांसदों में से महिलाएं सांसद केवल 112 थी| विशव की एक चौथाई संसदों में महिला सांसदों की संख्या 10% से भी कम है| अरब देशों में तो स्थिति और भी दयनीय है| सयुंक्त राष्ट्र के अनुसार, संसद में महिला भागीदारी 30% होनी चाहिए, जबकि अमेरिका के दोनों सदनों में महिला सांसदों की संख्या 20% के आस-पास है| इंग्लैंड में भी महिला सांसदों की संख्या इतनी ही है ,जबकि पाकिस्तान में 22 परसेंट| चीन, रूस, कोरिया, आदि देशों में महिलाओं को 33% आरक्षण पहले ही सही प्रावधान किया हुआ है,अभी फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, इंदौर में आदि देशों के राजनीतिक पार्टियों ने भी महिलाओं को 33% आरक्षण दे रखा है|Mahila Aarakshan Essay in Hindiमहिला आरक्षण विधेयक पर निबंध – Mahila Aarakshan Essay in Hindiभारत में जहां एक और स्त्रियां आर्थिक रुप से पुरुष के अधिन रही, वहीं दूसरी और सार्वजनिक जीवन में भी उनकी स्थिति अधिक असंतोषजनक रही| इस असंतोषजनक स्थिति को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि उनकी राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ किया जाए| राजनीतिक स्थिति से तात्पर्य है की ऐसे अनेक निकायों मे, जो निर्णयकारी है और जिन निकायों में राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक नीतियों को निर्धारित किया जाता है, महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए|
✴HOLA MATE ✴
ANSWER ⤵⤵
क्या महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए??
सदियों से दोषपुर्ण सामाजिक अव्यवस्थाओं की शिकार महिलाओं के कल्याण हेतु, उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने हेतु एवं महिला अत्याचारों पर लगाम कसने हेतु महिला आरक्षण की बात की जाती है। लेकिन हमने कभी सोचा है कि क्या आरक्षण मिलने भर से महिलाओं की स्थिति सुधर जाएगी या उनके प्रति हो रहे अत्याचारों में कमी आ जाएगी?
आज तक का इतिहास
• हमारे पुरुषप्रधान समाज ने हजारों वर्षों से बगैर किसी महिला आरक्षण के ऐसी महिला नेत्रियां प्रदान की है, जिन्हें अनुकरणीय मान नारी इतिहास गौरवान्वित है। कस्तूरबा गांधी, सावित्रिबाई फुले, कमला चट्टोपाध्याय, विजयालक्ष्मी पंडित और कैप्टन लक्ष्मी सहगल आदि कुछ ऐसे नाम है जिन्हें कभी भी किसी आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ी। ये उस कालखंड की विभुतियां है जब महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत अत्यंत ही कम था। बड़े-बड़े घुंघटों के बीच समाज ने उन्हें परदे से ढक रखा था। इस दृष्टिकोण से जब आज की पढ़ी-लिखी नारी आरक्षण की वकालत करती है तो आश्चर्य होता है।
• पंचायत समितियों में एवं स्थानीय निकायो में आरक्षण से जो महिलाएं राजनीति में आई है उनमें भी ज्यादातर महिला सरपंच के अधिकारों का उपयोग उनके पति, ससूर एवं देवर कर रहे है। ग्रामसभा एवं पंचायत समिति की बैठकों में भी महिला सरपंचों के बजाय उनके पति, देवर या ससूर ही मुद्दे उठाते है। इतना ही नहीं राजनितीक पार्टियों में भी उनके पती ही उनका प्रतिनिधित्व करते नजर आते है। कई बार लोकसभा चुनावों में दागी नेताओं का पत्ता कटने पर जिस तरह उनकी बीबियों को मैदान में उतारा गया और "दाग" मिटते ही जिस तरह वे बीबियों से इस्तीफ़ा दिलाकर संसद में लौट गए वह इसी मानसिकता का एक उदाहरण है। बिहार में राबडी देवी इसका सबसे जीवंत प्रतिक है। सिर्फ वे हीं महिलाएं कुछ कर दिखाने में कामयाब हुई जिन्हें परिवार का सहयोग प्राप्त था और जो शिक्षित थी!
महिला आरक्षण के समर्थकों का मानना
महिला आरक्षण के समर्थकों का मानना है कि
• इससे लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव घटेंगे।
• महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
• पंचायत एवं स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण के परिणाम बताते है कि महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा अच्छे से अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है। इससे ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र की जड़े मजबूत होगी।
• राजनीति से अपराधीकरण कम होगा।
• रोटेशन पद्धति के कारण कोई भी सीट हमेशा के लिए किसी एक परिवार तक ही सीमित नहीं रहेगी। इससे लोकतंत्र को स्थिरता मिलेगी।
• महिलाओं में नेतृत्व क्षमता का विकास होगा।
• सामाजिक कुरीतियां जैसे कि कन्या भ्रृण हत्या, दहेज, यौन उत्पीडन आदि में सुधार होगा।
लेकिन असल में ये सभी कार्य सिर्फ वे ही महिलाएं कर पाएगी जो शिक्षित होगी! नहीं तो उनकी स्थिति भी राबडी देवी जैसी ही होगी! अब यह हमें सोचना है कि महिलाओं को पहले आरक्षण चाहिए कि शिक्षा?
सिर्फ कानून से महिला की स्थिति नहीं सुधरती
जब भी महिलाओं को कुछ देने की बात आती है चाहे वह नौकरी हो, कोई पद हो या उनके अन्य कोई अधिकार, उन्हें कृपापात्र बना दिया जाता है। यदी हम समाज के अंदर ही देखें तो महिलाओं के क़ानूनी हक भी उन्हें नहीं दिए जाते। और जब भी दिए जाते है तो एक खैरात के तौर पर! जैसे यदि कोई बेटी पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा मांगती है तो सभी लोग उस पर उंगलिया उठाते है। कहा जाता है कि कैसी लालची बेटी है! इतना ही नहीं, मायके से उसके सारे रिश्तें ही खत्म कर दिए जाते है! जबकि हर बेटी का यह कानूनी अधिकार है। अब आप ही बताइए कि ऐसे क़ानून का क्या फायदा जिसका उपयोग ही न किया जा सके? आज समाज में ऐसी कितनी महिलाएं है जिन्होंने इस क़ानून का उपयोग किया या इस क़ानून की वजह से जिन्हें पिता की संपत्ति में हिस्सा मिला? इसी तरह दहेज़ कानून का भी यहीं हाल है। आज भी लडकी की शादी की बात आते ही सब से पहले यदि किसी बात का जिक्र आता है तो वो है दहेज़! जबकि क़ानूनन दहेज़ पर प्रतिबंध है! ऐसे में सिर्फ आरक्षण से राजनीति में आकर भी महिलाएं ज्यादा कुछ कर पाएंगी, संशयास्पद ही है|